(तारेश साहू )महासमुंद:- क्षेत्र के गांव में रविवार 4 अगस्त कोे हरेली (हरियाली) के दिन किसानों ने कृषि यंत्रो की पूजा अर्चना किया, वहीं साथ ही मवेशीयों को गेंहू के आंटा से बनाये गये लोंदी खिलाया गया । सावन के अमावस्या को मनाये जाने वाला छत्तीसगढ का यह पारम्परिक हरेली त्यौहार के बाद से ही सभी त्योहारों का आयोजन प्रारम्भ हो जाता है।
चांवल के आंटे से बने चिला रोटी का होता है चढावा
हरेली के दिन यादव समाज के लोगो ने बनगोंदली व दसमूल को रात भर उबाल कर सुबह ग्रामीणों के बीच गोठान में वितरित किया। इसके साथ ही वहीं सुबह गोठान में किसानों ने अपने – अपने मवेशीयों को आंटा का लोंदी खिलाया। जहां आंटे को खम्हार के पत्ते में लपेट कर थाली में गोठान ले जाते है।
हरेली के दिन किसानों ने पूजा अर्चना की कृषि यंत्रो का
इसके बाद कृषि यंत्रो जैसे हल, कुल्हाडी, कुदाल, गैंती, फावडा, हंसीया से लेकर ट्रेक्टर, हार्वेस्टर, पावर ट्रिलर संहित अन्य लौह कृषि उपकरणों को साफ कर दोपहर में पूजा अर्चना किया गया। पूजा में चांवल के आंटे से बने चिला चढाया गया। इस दौरान इसी कडी में गांव के बैगा एवं यादव बंधूओं ने घर – घर जाकर हरियाली के प्रतीक नीम की टहनीयां को घर दरवाजों में लगाया । इसके अलावा किसानों द्वारा खेतों व घर के बाडीयों में भी भेलवां पेंड की टहनीयों को लगाया गया। वहीं गांव के लोहारों ने भी घर – घर पहूंचकर दरवाजा या किसी लकडी में किल ठोंका गया । दोपहर में गांव के छोटे छोटे बच्चों ने बांस से बने गेंडी का भी खूब आनंद उठाया।
दरवाजों में नीम के पत्ती व गेंडी चढाने की परंपरा
छत्तीसगढ़ में हरेली के दिन घर में नीम पत्ती का विशेष महत्व तो, गेंडी चढाने की परंपरा वर्षो से है, दरअसल इसके पिछे वैज्ञानिक कारण भी है। बारिश के दिनों में मच्छर अधिक पनपते हैं। नीम में यह औषधि गुण होता है कि इससे मच्छरों के संख्या में नियंत्रण मिलता है। इसलिये गांवो में आज भी ग्रामीण मच्छर भगाने के लिये घर में नीम के सूखी पत्तियों को जलाकर धूंआ करते है।
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