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दरिंदे, लाॅजिक,लेखक मित्र और शाही भरवां बैंगन व् पावस:- महेश राजा की लघुकथा

महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकर महेश राजा की लघु कथाए दरिंदे, लाॅजिक,लेखक मित्र और शाही भरवां बैंगन व् पावस सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है

दरिंदे-गरीब परिवार था।काम के सिलसिले में पति-पत्नी दोनों को बाहर जाना पड़ता।घर पर एक चौदह वर्षीय बालिका थी।दरवाजा भीतर से बंद कर रहती। दरवाजे पर खटखटाने की आवाज सुनकर वह दौडी चली आयी।माँ बापू आ गये।उस मासूम को क्या पता था कि उसके साथ क्या घटित होने वाला है।

वह धड़धडा़ते भीतर घुस गया दरवाजा बंद कर दिया।बच्ची धबरा गयी।वह टूट पड़ा।बच्ची ने हिम्मत न हारी।वह जोरों से चीखने लगी।अब वो घबराये।असफल होने पर खीज भी उठा।पास रखी मट्टीतेल की टीपली उठा कर बच्ची पर उंड़ेल कर माचिस लगा दी। वो सरपट भागा।मांबाप आ गये थे।बेटी की हालत देख कर रो पड़े।जैसेतैसे अस्पताल पहुंचे।बच्ची काफी जल चुकी थी।उस मासूम ने दम तोड़ दिया। पुलिस आयी।अपराधी पकड़ा गया।सभी चर्चा कर रहे थे।गवाही के अभाव में वह छूट जायेगा या छोटी मोटी सजा होगी।

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रास्ते में इंस्पेक्टर ने जीप रोकी।अपराधी को नीचे धकेल दिया।मातहत देखते रहे,कि साहब यह क्या कर रहे हैं।
मौका देखकर अपराधी भागा।इंस्पेक्टर ने रिवाल्वर निकाली और गोलियों से भून दिया। सब देखते ही रह गये और अपराधी मारा गया।इंस्पेक्टर फुसफुसा रहे थे…-“..मेरे घर में भी दो-दो बेटियाँ है…ऐसे दरिंदे को मैं समाज में बरदाश्त नहीं करूंगा…..।”

लाॅजिक

शनिवार।वीकेंड।सब लान में बैठ कर चाय,दूध का आनंद ले रहे थे।आरती देवी शहर बेटे के पास आयी हुयी थी। बेटा भाविन,बहु हेतल और पोता काव्य। आरती-“तुम बाप बेटे के सिर के बाल बहुत बढ़ गये।” भाविक-“हाँ ,मम्मी. सोच रहे हैं बारबर को घर बुला लें।” आरती-“आज नहीं।आज शनिवार है।आज के दिन बाल नहीं बनाते।”

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काव्य ध्यान से उनकी बातें सुन रहा था-“क्यों दादी?उससे क्या होगा।”आरती-“घर में शुरु से ही रिवाज रहा।”काव्य समझदार बच्चा था-“पर दादी,कोई लाजिक तो होगा?” आरती मुस्कुरायी-“यह सब मैं न जानूँ।सब बड़े बुढ़े कहते आये हैं।तो हमने भी मान ली।”काव्य सोचने लगा। भाविक ने हेतल को ईशारा किया,कल सुबह दस बजे का समय तय कर लो।पिता-पुत्र साथ-साथ बाल बनवायेंगे।

लेखक मित्र और शाही भरवां बैंगन

बहुतदिनो बाद पोस्ट आफिस में लेखक मित्रों से मुलाकात हो गई।ढाई सौ रूपयो का मनी आर्डर लेकर वे बाहर निकल रहे थे।मुझे देखकर मुस्कुराये, बोले.,ढाई सौ का पेमेंट मिला अब तो रोज कुछ न कुछ मिलेगा।”
मैंने कहा-“व्यंग्य के लिये इतना पेमेंट ठीक ही है।”

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वह बोले,-“मारो गोली व्यंग्य को…मैंने भरवां बैंगन की व्यंजन विधि महिला पत्रिका में भेजी थी…।उसी का मानदेय है।अब मैं भरवां भिंडी,भरवां परवल और भरवां आलू की विधियां लिखूंगा…. अपने यहां व्यंजन साहित्य की बडी मांग है और इसमे स्कोप भी बहुत है।भरवां बैंगन मे काजू किसमिस और बादाम डाल दो तो यह शाही भरवां बैंगन हो जायेगा,यानी कि इसी बैंगन से ढाई सौ रूपये और बन जायेंगे। इसके बाद वे सब्जी मार्केट की ओर प्रसन्न मुद्रा में मुड़ गये।

पावस

बारिश की छोटी छोटी बूँदे टपक रही थी।वन्या अपने अकेले कमरे में बैठी आँसू बहा रही थी। उसे याद आ रहा था कि विनीत ने वादा किया था इस बार बरसात लगते ही वह जरूर आयेगा। दोनों के बीच एक अव्यक्त दूरी खिंच गयी थी।चाह कर भी इस अलगाव को पाट नहीं सक रही थी।

वह इस शहर में अकेले रहती थी।कालसेंटर में जाब थी।विनीत दो बरस पहले फोन पर ही मिला था।फिर दोस्ती.. प्यार और बहुत कुछ। पर,दोनों विपरीत परिधि के थे।धीरे धीरे दोनों के बीच दूरियां सढ़ती गयी।विनीत ने दूसरे शहर टा्ंसफर ले लिया।

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अब तो वह फोन भी नहीं लेता। वन्या ने आँसू पोंछे।भूरी आती ही होगी।आज रविवार है थोडा देर से आती है। वन्या ने काफी चढ़ायी और बारिश को बरसते देखती रही।उसने मन ही मन संकल्प लिया।अब कभी नहीं रोयेगी। आज भूरी से कह कर अपनी मनपसंद मेवा वाली खीर,पूरी और मटर की सब्जी बनवायेगी और फोरम माल में नयी फिल्म देखने जरूर जायेगी।

परिचय

महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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