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रजत जयंती पर्व पर गूंजीं छत्तीसगढ़ी पंक्तियाँ : आस्था साहित्य समिति ने आयोजित की काव्य गोष्ठी

"मया के अमरित बानी, महानदी के पानी, पुतरी आंखी के अन्तस के सुवांसा, लहू म महतारी भासा।”

रजत जयंती पर गूंजीं 36गढ़ी पंक्तियाँ ,आस्था साहित्य समिति ने की काव्य गोष्ठी

महासमुंद। छत्तीसगढ़ राज्य की रजत जयंती पर्व के उपलक्ष्य में आस्था साहित्य समिति महासमुंद द्वारा एक भावपूर्ण छत्तीसगढ़ी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम शिक्षाविद् के. आर. चंद्राकर के निवास, जगत विहार कॉलोनी महासमुंद में संपन्न हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति अध्यक्ष आनंद तिवारी ने की। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा —
“मया के अमरित बानी, महानदी के पानी, पुतरी आंखी के अन्तस के सुवांसा, लहू म महतारी भासा।”
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा हमारे अस्तित्व और संवेदना की पहचान है।

साहित्यकार एस. चन्द्रसेन ने अपनी रचना के माध्यम से छत्तीसगढ़ की माटी की सुगंध बिखेरी —
“मोर गांव के पबरित माटी चंदन मैं मान लगावंव माथ मं…”
वहीं डॉ. साधना कसार ने कहा — “छत्तीसगढ़ महतारी ल बारम्बार परणाम करत हव।”

रजत जयंती पर गूंजीं 36गढ़ी पंक्तियाँ ,आस्था साहित्य समिति ने की काव्य गोष्ठी

रायपुर से आई कवयित्री आशा मानव ने अपनी पंक्तियों —
“धीरे-धीरे दुनिया बाढ़त रहिथे, अपन रूप ल ये दुनिया सवारत रहिथे…”
से काव्य गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान की।

काव्य गोष्ठी का छत्तीसगढ़ी में मनमोहक संचालन साहित्यकार टेकराम सेन ने किया। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से ग्राम्य जीवन की मिठास प्रस्तुत की —
“भौजी के ठिठोली, बबा के मीठ बोली, पीपर के छईहां, मोर गांव अऊ गवईहा…”

 सरिता तिवारी ने छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की घटती परंपरा पर चिंता जताई और कहा —
“सिरा जाही का रे सिरा जाही का, तिजहा रोटी के बनाना…”

बागबाहरा से आए गजलकार हबीब खान ‘समर’ ने अपनी छत्तीसगढ़ी गजलों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया —
“कईसे करही ये मोर जिनगानी, तै काबर मोला धोका दिए ना…”

नवोदित कवि हर्ष साहू (भोरिंग) ने अपनी जोशीली पंक्तियों से दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं।
वहीं महासमुंद के प्रसिद्ध गीतकार और संगीतकार विवेक रहंटगांवकर ने गिरीश पंकज के गजल संग्रह का छत्तीसगढ़ी अनुवाद “एक दिन हमरो आही” प्रस्तुत किया और इसे समिति को भेंटस्वरूप दिया।

कार्यक्रम का संचालन टेकराम सेन ‘चमक’ ने किया तथा अंत में शिक्षाविद् के. आर. चंद्राकर ने सभी कवियों और अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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