महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की चाकलेट डे पर विशेष लघुकथा सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है। चाकलेट एक ऐसा शब्द है जो हर वर्ग व् हर उम्र के लोग को भाता है। इसके बिना बचपन अधूरी है, इसकी याद जेहन में रहती है समय विशेष पर रंग बिरंगी,छोटी बड़ी स्वाद की बाते जरुर होती है ।
चाकलेट डे
रीमा सुबह से उत्सुक थी।एक मित्र ने बताया था कि आज चाकलेट डे है।सभी अपने प्रियजनों को चाकलेट से नवाजते है।उसे यह लग रहा था कि पति देव को भी जरूर यह जानकारी होगी।बाहर से आने पर वह उसके लिये अच्छी सी चाकलेट लायेंगे।
इसी उधेडबुन में शाम हो गयी।पति देव लौटे।रीमा ने दौडकर उनका स्वागत किया।हाथ से बैग ले लिया।गरमागरम चाय और पानी लिये आयी।पति देव निर्लिप्त थे।वे चाय पीकर अपने कमरे में चले गये।मोबाइल पर किसी से बात करने लगे।
रीमा ने चुपचाप पतिदेव की बैग को खंगाला कि शायद उसमें चाकलेट हो।पर उसे मायूसी ही हाथ लगी। रीमा खिन्न मन से रात के भोजन की तैयारी में लग गयी।
तभी उसे अवि की आवाज आयी।वह उसे ढ़ूंढ़ता किचन में आया।पीछे से लिपट गया।मम्मी आँखें बंद करो।उसने हँस कर आँखे बंद की रूद्र ने सामने से आकर उसके हाथ में केडबरी चाकलेट थमायी।वह खुशी के मारे उछल पडी।अवि कह रहा था मम्मी आज सभी एक दूसरे को चाकलेट दे रहे थे।मैंने भी अपने जेबखर्च से कुछ रूपये बचाये थे कि आज के दिन अपनी प्रिय मम्मी को, जो हरदम मेरा ख्याल रखती है,चाकलेट भेंट करूंगा. रीमा की आँखों से खुशी के आँसू छलक पडे। मेरा लाड़ला कह कर उसने अवि को अपने सीने से लगा लिया।
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चाकलेट डे-लेमन चूस और बचपन
आज एकाएक बचपन के दिन याद आ गये। कितने सुनहरे दिन थे।न भावी की चिंता न ही अन्य कोई बरडन।बस खाना,सोना,पढना और खेलना। बचपन मे वह लडकियों के साथ ही छिपा छिपी,रेसटीप,रस्सी कूद आदि खेल खेलता।
गंजपारा छोटा सा मुहल्ला।सब प्रेम भाव से रहते।
एक गोलमटोल सी लडकी थी।वह हमेशा उसके आगे पीछे ही घूमती।उसे भी उस लडकी का सामीप्य अच्छा लगता।
..आपस मे लडते,खेलते,मनाते।उस लडकी को मीठा बहुत पसंद था।उस जमाने मे गटागट,लेमन चूस और संतरे की मीठी गोली मिलती थी।धनजी भाई के यहां,स्कूल के पास।
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वे जब भी मिलते तब वह यही सब लाता।वह बडे प्रेम भाव से खाती,हंसती ,मुस्कुराती।उसे अच्छा लगता।हालांकि उन दिनो पैसे का अभाव था।मां.को पटा कर वह पैसे मांगता,तब पिपरमेंट खरीद पाता। समय उडता गया।कब बडे हुए पता ही नहीं चला।फिर उसके पापा का कहीं टा्ंसफर हो गया।
यह सब वह भूल गया था।पर आज जब चाकलेट डे की बात निकली तो मन मे आया।आज पैसे है ,रूतबा है।सब वो चीजे जो जीवन मे जरूरी है,सब है।पर बचपन की वह लेमनचूस वाली दोस्त नहीं है।
मन मे विचार आया कि काश आज कहीं से वह गोलमटोल लडकी मिल जाये तो उसे वह दुनिया की सबसे महंगी चाकलेट लेकर देगा। पर वह जानता था ऐसा संभव नहीं।जाने कहाँ होगी।उसे यह सब याद भी होगा…और मिल भी जाये तो क्या वह पहचान पायेगा। ढेर सारे प्रश्न चिन्ह थे।जिसका जवाब उसके पास नहीं था।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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