महासमुंद। 15 नवम्बर को देवउठनी एकादशी है इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते है इस दिन से हिन्दू धर्म के सभी शुभकार्य प्रारम्भ होते है आइए जाने तुलसी-शालिग्राम विवाह व् तुलसी,शालिग्राम की कथा ।
गन्ने का बनाए मंडप
सर्वप्रथम घर पर 2 या 2 अधिक गन्ना(ईख)लाएं तथा इसका मंडप श्री तुलसी जी के चौरे के पास रखें।अगर घर में शालिग्राम है तो उन्हें पीले वस्त्र में लपेटकर तुलसी की जड़ में रखें और एक वस्त्र से दोनों का गठबंधन करवाएं। तुलसी से लेकर पूजा घर तक का रास्ता साफ करके उस पर रंगोली सजाएं। बाद तुलसी संग भगवान विष्णु जी की पूजा करें। भगवान विष्णु की आरती और तुलसी माता की आरती करें। श्रद्धानुसार बताशा,लाई,मिठाई तह फल का भोग लगाएं।माता तुलसी को चूड़ियां,मेहंदी,चुनरी तथा श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं।
यह पूजन सामग्री रखें-
पीला वस्त्र,चुनरी,चंदन,गुलाल,सिंदूर,आलता या माहुर,धूप ,दीप,प्रसाद,भोग,फल,गन्ना,घी से सजी आरती की थाली,कपूर,पान सुपारी, दक्षिणा
क्या है तुलसी,शालिग्राम की कथा
तुलसी पूर्व जन्म मे एक कन्या थी जिस का नाम वृंदा था। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था ।बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा । स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी विजय श्री के लिये अनुष्ठान करूंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी।
विवाह के लिए मात्र 15 शुभ मुहूर्त है देवउठनी एकादशी से वर्षांत तक
लिया व्रत का संकल्प
जलंधर युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके। सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का रूप लिया
भगवान ने जलंधर का रूप लिया और वृंदा के महल में पँहुच गये। घर पहुचने के बाद वृंदा ने अनुष्ठान करना बंद कर दिया जिसके चलते देवताओं ने जलंधर का वध कर दिया व् उसका कटा सिर कुटीया के बाहर गिरा किसी कारण से वृंदा कुटिया से बाहर आई तो देखा कि उसके पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर कुटिया के अंदर कौन है? उन्होंने जा कर पूँछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया। तब भगवान अपने असली रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके। वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया कि आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
विष्णु भगवान ने दिया नाम तुलसी
इस घटना से सभी देवताओ में हाहाकार मच गया व् लक्ष्मी जी रोने लगी और प्रार्थना करने लगे। तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वह सती हो गयी। उस राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोगस्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !
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