Home आलेख शरदोत्सव, खीर और साहित्य चर्चा के अलावा महेश राजा की अन्य लघुकथा

शरदोत्सव, खीर और साहित्य चर्चा के अलावा महेश राजा की अन्य लघुकथा

शरद पूर्णिमा पर कर्मचारी वर्ग ने एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया था

महेश राजा की लघुकथा कान्वेंट कल्चर ,टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता ,उदाहरण व् ए.टी.एम

महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए -शरदोत्सव, खीर और साहित्य चर्चा, और चांद खिल उठा,भेद,शुरुआत व् समझौता सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

शरदोत्सव, खीर और साहित्य चर्चा- शरद पूर्णिमा पर कर्मचारी वर्ग ने एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया था। देर रात चले कार्यक्रम में कवियों ने अपनी सुमधुर रचनाओं से खूब वाहवाही लूटी। दूसरे दिन आफिस में इसकी खूब चर्चा हुई।रसमर्मज्ञ देश पांडे जी से किसी ने उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही।

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देशपांडे जी साहित्य रसिक तो थे ही,मग्न हो कर बोले,-“रचनाएं तो ठीकठाक थी।पर हाँ,बारह बजे के बाद आपने जो खीर वितरित की ,अत्यंत स्वादिष्ट थी।और एक बात और कार्यक्रम के समापन के बाद भजिए और चटनी ने मजा ला दिया।स्वाद अभी तक जीभ पर बना हुआ है।भई ,वाह!

और चांद खिल उठाः

बहुत शानदार जोडी थी,दोनों की।पति जी एक आफिस में अफसर थे।पत्नी जी एक स्कूल में अंग्रेजी पढाती थी। जैसा कि आम दाम्पत्य जीवन में होता है,किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी।बातचीत बंद हो गयी। आज करवा चौथ का त्योहार था।पत्नी जी ने व्रत रखा था।पति सुबह नहा धोकर बिना नाश्ता किये आफिस चले गये। दोनों दिन भर विचलित रहे।एट दूसरे को फोन करते थे फिर काट देते थे। किसी तरह शाम हुई।दोनों ने कुछ भी नहीं खाया था।पति घर पहुंचे, उनके दोनों हाथों में पैकेट थे।

पत्नी चाय लिये आयी।पति देव ने न पी।रात होने वाली थी।पत्नी ने पूजा की थाली,पानी का कलश सजाया।अब वे छत पर पहुंची।पति महोदय पहले से ही मौजूद थे। पत्नी ने पूजा की शुरूआत की।चांद निकलने को ही था।पत्नी ने पति की पूजा की।छलनी से पति को देखा।पति ने पानी का कलश उठाया.पत्नी को पिलाया।पत्नी की आंखों में आंसू छलक आये थे।पति ने झट ताजे गुलाबों का गुलदस्ता एवम लाल रंग की सुंदर साडी निकाल कर दी।पत्नी को गले लगाया।उसके आंसू पोंछे।

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वे जमीन में घुटनों के बल बैठकर फूल बढाया,और कहा-“आज के इस पावन पर्व पर मैं तुमसे यह वादा करता हूं कि तुमसे कभी नाराज न होऊंगा और न ही तुम्हें डांटूगा।तुम भी वादा करो मुझसे कभी नाराज न होओगी।”

पत्नी ने मौन वायदा किया।साडी का पैकेट लेकर साडी बदलने चली गयी। नयी साडी पहनकर आयी।दोनों ने सैल्फी ली।अब वे जल्दी से नीचे जाने लगे।पत्नी ने ढेर सारे पकवान बनाये थे। आसमान में चांद मुस्कुरा रहा था।

भेद

निलय आज भी केयरटेकर की नजर बचाकर पास की बस्ती में चला आया।यह गरीबों की बस्ती थी। बाहर खेलती मुन्नी नजर आयी।पास जाकर दो चाकलेट निकाल कर एक मुन्नी को दिया।-आज भी नहीं खेलोगी,मेरे साथ।
-ना.माँ ने मना किया है।

-पर,क्यों? -माँ कहती है,तुम लोग अमीर हो और हम गरीब।तुम्हारे पास नये कपड़े और जूते है।मेरे पास यह पुरानी पीली फ्राक.फटी चप्पलें। निलय कुछ समय सोचता रहा।फिर उसने अपनी शर्ट फाड़ ली।जूते फेंक दिया।अब कहा,देख लो अब मैं भी गरीब हो गया….अब तो खेलेगी न मेरे साथ..।

शुरुआत

रामू रिक्शा चलाता था। उसका इकलौता लड़का पास के ही जनपद स्कूल मे पढ़ता था। रामू सोचता था कि उसका लड़का पढ़ लिखकर कुछ बन जाये तो जिस तकलीफ से वह गुजरा है, उससे बच जाये। यही सोच कर वह मास्टर जी के बच्चों को कभी-कभार बगीचे तक मुफ्त की सैर करा लाता था ताकि मास्टर जी बच्चे का पढ़ाई में ध्यान रखेंगे।

आज रामू घर लौटा तो पाया कि उसका लड़का रो रहा है। पूछने पर सिसकते हुए उसने बताया कि गुरुजी ने आज उसे छड़ी से खूब मारा है। रामू ने पूछा, “तूने कोई गल्ती की होगी?” बच्चा सिसकता हुआ बोला, “नहीं बाबू, किसी शरारती लड़के ने मास्टर जी की टेबल पर मेंढ़क रख दिया था और नाम मेरा ले दिया।”

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रामू ने बच्चे को गले से लगा कर चुप कराया और कहा, “मार के डर से पढ़ना छोड़ देगा क्या? तुझे भी मेरी तरह रिक्शा ही खींँचना है क्या? हमारे जमाने मे तो गुरू जी बहुत मार मारते थे। मैंने ड़र कर स्कूल जाना छोड़ दिया तो देख लो रिक्शा ही चला रहा हूँ।”

लड़के को समझा कर जैसे ही रामु रिक्शा लेकर निकला। सड़क तक पहुंचा ही था कि पीछे से कोई आवाज आई। मुड़कर देखा तो मास्टर जी का लडका राजू था, “ऐ रिक्शा…। बाजार तक चलना है।” रामू ने राजू की तरफ देखा। उसे लड़के का रोता हुआ चेहरा याद आ गया। गुरू जी ने अकारण उसके लड़के को पीटा था। उसने तेजी से रिक्शा आगे बढ़ा दिया।

समझौता-

आफिस के सामने दो कुत्तै लड़ रहे थे।दोनों एक दूसरे पर झपटते तो लगता ,जैसे अपने प्रतिद्वंद्वी को नोच खायेंगे।
एक सज्जन यह तमाशा देख रहे थे।अचानक उन्हें कुछ याद आया।उन्होंने अपनी बेग से पारले जी का एक पैकेट निकाला और कुत्तों के सामने फेंक दिया।

दोनों कुत्ते पैकेट पर झपटे।लडाई बंद कर वे एक साथ बिस्किट खाने लगे। सज्जन ने पास खड़े एक आदमी से कहा,”देखा आपने?दोनों थोडी देर पहले किस तरह लड़ रहे थे लेकिन बिस्किट मिलने पर लड़ाई छोड़ कर आपसी समझौता कर बैठे।”
सज्जन के पास खडे आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा,”दोनो एक ही विभाग से है….ऐसे मौको पर वे समझौता कर ही लेते है।विभागीय आदत से लाचार जो है।

लेखक परिचय

महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544