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देश की राजधानी में नक्सली दहशत की नहीं बल्कि पपीते के मिठास की हो रही है चर्चा

बदलता बस्तर नई तस्वीर दरभा में प्रशासन की पहल और महिलाओं की मेहनत ला रही रंग

देश की राजधानी में नक्सली दहशत की नहीं बल्कि पपीते के मिठास की हो रही चर्चा

जगदलपुर-राष्ट्रीय स्तर पर आमतौर पर बस्तर की चर्चा नक्सली घटनाओं के कारण ही होती है लेकिन देश की राजधानी में चर्चा का विषय नक्सली दहशत नहीं बल्कि यहां के पपीते की मिठास थी। पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित फ्रेश इंडिया शो में हाईटेक तरीके से की जा रही इस खेती की जमकर सराहना हुई। पपीते की हाईटेक खेती उस इलाके में हो रही है।

यंहा के किसान पारंपरिक पेंदा खेती के सहारे ही अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। पेंदा खेती के कारण यहां बड़े पैमाने पर जंगलों को भी नुकसान पहुंचा और यहां के ग्रामीणों को भी किसी प्रकार की आय नहीं बढ़ी। ऐसी स्थिति में प्रशासन द्वारा इस क्षेत्र में उन्नत कृषि को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया और तीरथगढ़, मुनगा और मामड़पाल में तीस एकड़ क्षेत्रफल में हाईटेक ढंग से पपीते की खेती का प्रयास किया गया। इसके लिए बस्तर किसान कल्याण संघ से तकनीकी सहायता ली गई।

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देश की राजधानी में नक्सली दहशत की नहीं बल्कि पपीते के मिठास की हो रही चर्चा

तीरथगढ़ में मां दंतेश्वरी पपीता उत्पादक समिति की सचिव हेमा कश्यप बताती हैं कि यहां 8 स्वसहायता समूह की महिलाओं ने पपीते की खेती में रुचि दिखाई और अब 43 महिलाएं सक्रिय रुप से कार्य कर रही हैं। यहां चट्टानी जमीन में पपीते की खेती एक नया प्रयोग था। महिला स्वसहायता समूह की कुछ महिलाओं ने इस प्रयोग की असफलता की आशंका को देखते हुए कार्य छोड़ दिया, मगर 43 महिलाएं पूरी रुचि और चट्टानी इरादों के साथ अपने काम में डटी रहीं। इसका परिणाम आज उन्हें दिख रहा है, जब उन्हें अच्छी फसल मिल रही है और उनकी कीमत भी अच्छी है।

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हेमा ने बताया कि बस्तर जिला प्रशासन द्वारा इसकी पहल करते हुए यहां की महिला स्वसहायता समूह की सदस्यों को प्रेरित करते हुए जोड़ा गया, वहीं उद्यानिकी विभाग एवं बस्तर किसान कल्याण संघ द्वारा भी आधुनिक तरीके से की जाने वाली इस खेती के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के साथ-साथ अधोसंरचनाएं भी उपलब्ध कराई गईं।

देश की राजधानी में नक्सली दहशत की नहीं बल्कि पपीते के मिठास की हो रही चर्चा

हाईटेक खेती से पूरी तरह अनजान स्वसहायता समूह की महिलाओं को समय-समय पर मिले प्रशिक्षण ने काम आसान कर दिया। वहीं अच्छी उत्पादन क्षमता वाली अमीना किस्म की पपीते के

पेड़ों में लगे फलों ने स्वसहायता समूह की सदस्यों का उत्साह और बढ़ा दिया।

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खास बात यह है कि यहां पौधों को रोपने से पहले इनकी टेस्टिंग करते हुए

द्विलिंगी पौधों को ही लगाया जाए, जिनमें उत्पादन अधिक होने के साथ

ही गुणवत्ता भी अच्छी होती है। डेढ़ वर्ष की इस फसल में प्रति एकड़

70 से 80 टन उत्पादन की संभावना है। इससे इनके अच्छे दाम मिलने की

संभावना और भी बढ़ जाती है। पिछले महीने की 6 तारीख को हुई पहली

तुड़ाई के बाद अब तक सात-आठ तुड़ाई की

जा चुकी है और दस टन से अधिक फल बेचे जा चुके हैं।

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