महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए हिँसक, मुक्ति,व्यवहार सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है
हिँसक-ठीक सात बजे चकोर काम पर हाजिर थी।शीलाजी ने दरवाजा पहले ही खोल दिया था। शीलाजी चाय बना रही थी। वे आज चुप थी।मालकिन का उतरा चेहरा और सूजा मुँह देखकर चकोर समझ गयी थी कि साहब ने शराब पीकर…..। वातावरण को हल्का करने चकोर ने पूछा,दीदी नाश्ते में क्या बनाऊँ?
अनमने स्वर में शीलाजी ने कहा,कुछ भी बना ले। दोनों मौन चाय पी रहे थे।चकोर ने फिर कहा,दीदी आपने मुझे समझाया था न कि घरवाल़े के साथ प्यार से पेश आऊँ,यह बिल्कुल सही बताया था।आज वो मुझ से बहुत प्यार करता है,हाथ भी नहीं उठाता और मुन्ना के आने के बाद तो उसने पीना भी बंद कर दिया।
शीला चुप छत को ताक रही थी,वह कहना चाह रही थी कि तुम्हारे यहाँ अब समझदार हो गये है,तुम लोगों के यहाँ हिँसा भी बंँद हो गयी है। अब यह सब पढ़े लिखे लोग करने लगे है। उन्हें रोना आ रहा था।वे चुपचाप वाश रूम की ओर बढ़ चली
मुक्ति
रिया आज जल्दी उठ गयी थी।दैनिक कार्यों से निवृत होकर,पेड़पौधों को पानी पीलाकर पूजा करने बैठ गयी। गाँव से दो भतीजे आये थे।उनमें से एक का आज जन्मदिन था।ढ़ेर सारी तैयारी करनी थी।गायत्री हवन रखना था।सजावट भी बाकी थी।
याद आने पर अपना पर्स टटोला।मात्र पाँच सो दस रू. थे।कैसे होगा सब? पति के जागने का इंतजार करने लगी।उनके उठने पर गरम पानी,समाचार पत्र और चाय दी।अवसर देखकर कुछ रूपये माँगे। इन दिनों पति का हाथ कुछ तंग था।नाराज होकर बोले,हर समय भिखमंगों की तरह माँगती रहती हो।कुछ बचा कर नहीं रख सकती।
रिया चुप रही।हलके से मुस्कुराती रही।अच्छी खासी सेलरी है उसकी।पर सारा रूपया पति को दे देती है।बड़ी गृहस्थी, आये दिन मेहमान।जैसे-तैसे मैनेज करती थी। पतिदेव बड़बड़ाते रहे,योग्यता है नहीं और बनने चले है नवाब।
रिया ने समझाया,यह सब वह भतीजे के जन्मदिन के लिये कर रही है। पति मानने को तैयार न थे।तुम घर गृहस्थी चलाने योग्य ही नहीं। अब रिया की आँखों से अश्रुधारा बह निकली,तो मुक्त कर दो न इस बँधन से।मैं जीना चाहती हूँ,अपने लिये,अभि के लिये और समाज के लिये भी। पति देव तमतमाये स्नानघर की ओर बढ़ गये।
व्यवहार
आरती देवी की कार आ गयी थी।सब उन्हें विदा देने पहुँचे थे। आरती जी ने बेटा,बहु और पोते को सगुन लिफाफा दिया।रामू को कपड़े दिये।घर की कामवाली गोपा को उन्होंने लिफाफा और मिठाई का पेकेट दिया। वे सब ना कहते रहेःआरती जी ने कहा,यह एक व्यवहार है और मेरा आशीर्वाद।
दरअसल धर्म यात्रा पर निकली आरती जी कुछ दिनों के लिये बेटा-बहु के साथ रूकी थी। उनका सरल और धार्मिक व्यवहार सबको बहुत पसंद आया था। आते समय भी वे गोपा के लिये सूट लाना न भूली थी। सभी ने भाव भरे ह्रदय से आरती जी को विदा किया। उनके जाने के बाद भी उनकी ही बातें और तारीफ होती रही।
परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता: महेश राजा वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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