‘सारंडा इम्यूनिटी बूस्टर काढ़ा’ कोरोना से लड़ने के लिए प्रतिरोधक बढ़ाएगा क्षमता

कोरोना काल निश्चित रूप से परेशान करने वाला है लेकिन आने वाले समय में इसके द्ववारा दिया गया सबक मानव जाति के कल्याण के लिए मील का पत्थर साबित होगा.

एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 के संक्रमण को रोकने और उससे बचाव के तरीके ढूंढ रही है, वहीं आदिवासी बहुल पश्चिमी सिंहभूम जिले में वन विभाग पारंपरिक काढ़ा के ज़रिए कोरोना के फ्रंटलाइन वारियर्स की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में जुटा है।

सारंडा वन प्रमण्डल ने आयुष मंत्रालय की गाइड लाइन पर आधारित इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिंक तैयार किया है। आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज चाईबासा के पूर्व प्राचार्य डॉ मधुसूदन मिश्रा की देखरेख में इस काम को किया जा रहा है।

पूर्व प्राचार्य का मानना है कि वायरल संक्रमण का इलाज संभव तो नहीं लेकिन उसके लिए शरीर में एंटीजेन तैयार कर हम उसे मात दे सकते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से ही संभव होता है।

साल के वृक्षों के लिए मशहूर एशिया प्रसिद्ध सारंडा का वन क्षेत्र औषधीय पौधों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहीं से प्राप्त जड़ी बूटियों और अन्य वन उपजों को इकट्ठा कर स्थानीय वन समिति के जरिए इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिंक का वृहद पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है।

सारंडा के डीएफओ रजनीश कुमार ने बताया कि इसे जिले के पुलिस कर्मियों और स्वास्थ्य कर्मियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें दिया जाएगा।

पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त अरवा राजकमल ने इस ड्रिंक को उपयोगी बताते हुए कहा कि इसके उत्पादन से वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आमदनी को बढ़ाने में मदद तो मिलेगी ही, कोरोना के फ्रंटलाइनर योद्धाओं के लिए भी यह ड्रिंक सहायक साबित होगी।

कोरोना संक्रमण काल में जब तक इसका कोई इलाज नहीं मिल जाता तब तक रोग प्रतिरोधक झमता बढ़ाना भी एक कारगर उपाय माना जा रहा है।

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कोरोना संकट ने हमारे समक्ष जहाँ स्वास्थ्य चुनौती पेश की है वहीँ यह हमें जीने की नई राह भी दिखा रहा। बड़े तो बड़े बच्चे तक इस संक्रमण काल में अब नवाचारों की ओर बढ़ रहे है।

गुमला के एक बच्चे ने करेंसी सैनिटाइजर मशीन का निर्माण किया है जिसको बनाने में महज 1500 रूपए का खर्च आया है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनौती को अवसर में बदलने पर हमेशा जोर दिया करतें हैं। कोरोना काल में संक्रमण का खतरा मंडराया तो गुमला के अर्जित आर्य ने सोचा की करेंसी नोट भी संक्रमण का वाहक बन सकता है।

इस खतरे को भांपते हुए उन्होंने मात्र 1500 रूपए खर्च कर मुख्यतः जुगाड़ तकनीक से एक मोटर और दो रोलर  समेत कुछ अन्य चीज़ों के सहयोग से करेंसी सैनिटाइजर मशीन बना डाला है।

जिले के उपायुक्त शशि रंजन ने गुमला के इस होनहार बालक के इस इनोवेशन की जमकर तारीफ की है . उपायुक्त ने कहा कि  इसमें और अधिक सुधार करके  बैंकों को उपलब्ध कराए जाने पर  विचार किया जा रहा है।

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जनजातीय बहुल गुमला में नवाचार की बात यही नहीं रूकती। गुमलावासियों ने काफी सुरक्षित  फेस कवर का भी निर्माण किया है।

जिसमें फेस कवर आई विजन के साथ सिर को ढकने की भी व्यवस्था  है। इस फेस कवर को बनाने में महज़  40 रुपए की लागत आती है।

कोरोना काल निश्चित रूप से परेशान करने वाला है लेकिन आने वाले समय में इसके द्ववारा दिया गया सबक मानव जाति के कल्याण के लिए मील का पत्थर साबित होगा ।

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