बागबाहरा। शहर से लगे देवाशीष इंग्लिश मीडियम हायर सेकेंडरी स्कूल के विद्यार्थियों ने अपनी भाव प्रवण प्रस्तुतियों के माध्यम से जंहा समाज में व्याप्त समाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया और बुद्धजीवियों को सोचने के लिए विवश किया।भरत नाट्यम से प्रारंभ हुआ उत्सव गणेश वंदना के साथ आगे बढ़ा और शुरुआत में ही समाज मे नारी उत्पीड़न पर नाटक एसिड अटैक की भाव प्रवण प्रस्तुति ने सबको झकझोर दिया।
कार्यक्रम में शिव तांडव नृत्य की शानदार प्रस्तुति से जंहा दर्शकों का मन मोह लिया वंही कार्यक्रम में मौजूद विद्यार्थियों में जोश भर दिया। विद्यालय के नन्हे मुन्ने बच्चों ने मनमोहक फैंसी कार्यक्रम कर उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम में प्राचार्य मीनू कालिया ने विद्यार्थियों की भरपूर सराहना की और कहा कुशल और ऊर्जावान शिक्षक और शिक्षिकाओं के द्वारा इन विद्यार्थियों को निखारने का अनुपम प्रयास किया है।स्कूल का संक्षिप्त वार्षिक प्रतिवेदन सुजाता शर्मा ने वाचन किया और निप्पी कालिया ने समापन के अवसर पर कार्यक्रम के सभी प्रतिभागियों, अभिभावकों व दर्शकों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
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समारोह के मुख्य अतिथि स्वामी अभ्यानंदजी बच्चों को आशीर्वचन देते हुए उज्जवल भविष्य की कामना की ।उन्होंने कहा कि बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए ऐसे शिक्षा मंदिरों का चुनाव करना चाहिए जंहा शिक्षा के साथ संस्कार भी सिखाया जावे।बच्चों में अच्छे संस्कार की यह बुनियाद पर देश की बुनियाद मजबूत होगी।
” बच्चों को मोबाइल का संतुलित उपयोग करने की आज्ञा देनी चाहियें “
उन्होंने उन अभिभावको को आड़े हाथ लेते हुए आगाह किया कि बच्चों को महंगा मोबाइल दिलवाने के बाद उन्हें यह देखने की फुरसत नही है,उनका मासूम क्या कर रहा है।समय की मांग के अनुसार ने तकनीक से परिचित होना और सकारात्मक ढंग से नई तकनीक का इस्तेमाल करना ठीक है।ज्ञान व शोध के लिए मोबाइल ने नए माध्यम खोल दिये हैं ।इंटरनेट द्वारा कोई भी कंही से ज्ञानार्जन कर सकता है। निःसंदेह मोबाइल विद्यार्थियों के लिए एक सहायक की भूमिका निभाता है,पर अति की वर्जना है इस आयु में नियंत्रण भी आवश्यक है अतः अभिभावकों को इसका संतुलित उपयोग करने की आज्ञा देनी चाहिए।
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मध्यम परिवारों की यह मजबूरी और विडंबना है कि उन्हें अपनी संतानों को मोबाइल और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करानी पड़ती है। उन्हें मोबाइल से मनोरंजन साइट्स को हटवा करके उपयोगी सामग्री ही अपने बच्चों को उपलब्ध करवाना चाहिए। मां- बाप की यह जिम्मेदारी है कि संतान स्कूल से आने के बाद घंटो मोबाइल से चिपका हुआ है तो उसे काल्पनिक संसार से बाहर निकालें।।इसके लिए घर से ही संस्कार देने होंगे और माँ संस्कारो की पाठशाला होती है।घरों में वातावरण सुधारने व संस्कार देने की जिम्मेदारी माँ की होती है। तभी मोबाइल वास्तविक अर्थो में सहयोगी होगा।
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