शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा से निकलने वाली ऊर्जा को अमृत के समान चमत्कारी माना जाता है. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा से निकलने वाली समस्त ऊर्जा उस खीर के भोग में सम्माहित हो जाती है
पूर्णिमा की रात औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक हो जाती है.रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है. सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है. दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है. यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है.
शरद पूर्णिमा का महत्व शास्त्रों में भी बताया गया है. कहते हैं यह दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की रोशनी से निकलने वाला अमृत रोगियों के रोगों को दूर करता है. इस दिन खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी में लगभग 4 घंटे के लिए रखें. खीर किसी पात्र में डालकर ऐसे स्थान पर रखें जहां चांदनी आती हो.चाहें तो खीर को सफेद झीने वस्त्र से ढककर भी रख सकते है.खीर को चांदनी से हटाने के बाद श्री लक्ष्मीनारायण को उसका भोग लगाकर एंव भोग लगी खीर को प्रसाद रूप में बांटें व खाएं.
शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा से निकलने वाली ऊर्जा को अमृत के समान चमत्कारी माना जाता है. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा से निकलने वाली समस्त ऊर्जा उस खीर के भोग में सम्माहित हो जाती है. इसे प्रसाद रूप में लेने वाले व्यक्ति की दीर्घायु होती है.बीमारियों का नाश करने वाली है ये अमृत वाली खीर रोगियों के लिए शरद पूर्णिमा की अमृत की खीर वरदान साबित होता है. स्वस्थ लोगों के लिए यह रात सेहत और सम्पति देने वाली है। इसलिए शरद पूर्णिमा को अमृत वाली खीर खाने के बहुत फायदे होते हैं। इस खीर को खाने वाला व्यक्ति प्रसिद्धि को प्राप्त करता है।