आत्मा से परमात्मा का मिलन ही महारास – स्वामी श्री राधामोहन शरण देवाचार्य

रायपुर-श्री महामाया देवी मंदिर रायपुर में राधासर्वेश्वर धाम भक्त समूह द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत् सप्ताह ज्ञान महायज्ञ के सातवे दिन कथा प्रवक्ता परमपूज्य श्री जगद्गुरू निम्बार्काचार्य पीठाधिश्वर स्वंभूराम द्वाराचार्य श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी महराज (श्री राधा सर्वेश्वर संस्थान, श्री गिर्राज अन्नक्षेत्र, मथुरा) ने व्यासपीठ से संबोधित करते हुये कहा की माया की आवश्यकता जीव और परमात्मा दोनों की पड़ती है परंतु जीव जिस माया को अपना मानता है वह उसकी अविद्या है लेकिन परमात्मा की माया साक्षात योगमाया है।

भागवत जी के महात्मय को आगे बढ़ाते हुए महराज श्री ने गोवर्धन पूजा की कथा सुनाई. उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण ने पर्वत को वाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली पर उठाये रखा, उस दौरान सात दिन तक भगवान ने एक भी दाना अन्न का नहीं खाया व बिना हिले एक ही जगह पर खड़े रहे. भगवान की यह भावना देख व्रज वासियों का भावना भगवान श्री कृष्ण के प्रति और भी अधिक बढ़ गयी. सात दिन बाद जब वर्षा बंद हुई प्रभु ने गिरिराज जी को यथा स्थान स्थापित कर दिया।

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श्री शुक देव महाराज जी कहते है कि जब इंद्र को यह बात पता चली कि यह मेरे प्रभु श्री कृष्ण हैं तो इंद्र जी को बहुत ही पश्चाताप हुआ. इस पर इंद्र सुरभि व धेनु गऊ को साथ लेकर वृंदावन आ पहुंचे और गौ के दूध से भगवान का अभिषेक किये. इस वजह से भगवान का नाम पड़ा गोविंद. भगवान ने इंद्र से कहा कि आपका कल्याण हो। क्योंकि भगवान बड़े ही दयालु है, इंद्र को क्षमा कर दिये क्योंकि भगवान सभी से प्रेम करते है. आगे शुक देव महाराज जी ने बड़ा सुंदर प्रसंग सुनाया है कि एक बार नंद बाबा आसुरी वेला में स्नान करने के लिए यमुना में चले गए तो वरुण जी के सेवक नंद बाबा को पकड़ कर ले गये. भगवान कृष्ण को जब पता चला तो वह वरुण के पास जा उन्हें दर्शन देकर बाबा को वापस लेकर लाए और फिर ग्वाल वालों को बैकुंठ के दर्शन करवाये.

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आज की कथा में महारास का वर्णन करते हुये स्वामी श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी ने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं. उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं. जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वह भव पार हो जाता है. उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है. रासलीला में काम वासना का लेश मात्र का भी भाव नहीं था वरन महाराज भगवान और उन भक्तों का महामिलन था जो जन्म जन्मांतर से भगवान को प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रहे थे गोपियां कोई संचारण स्त्रियां नहीं थी यह तो वेदों के आचरण थी जो भगवान को प्राप्त करने के लिए गोपियों के रूप धारण करके आए. जिन्होंने अनवरत और सभी इंद्रियों से रसों वेश कृष्ण का रसपान कराती भी उन्हें दिव्य आत्माओं इच्छा पूर्ति के लिए भगवान ने महारास किया।

उन्होंने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का मिलन हुआ। जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते हैं। कथा के दौरान भजन सुन मुरली की तान दौड़ आई सांवरिया पर श्रोताओं ने भाव विभोर होकर नृत्य किया.

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रास का तात्पर्य परमानंद की प्राप्ति है जिसमें दुःख, शोक आदि से सदैव के लिए निवृत्ति मिलती है. भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को रास के माध्यम से सदैव के लिए परमानंद की अनुभूति करवाई. भागवत में रास पंचाध्यायी का विश्लेषण पूर्ण वैज्ञानिक है, महराज श्री ने कहा कि आस्था और विश्वास के साथ भगवत प्राप्ति आवश्यक है.
आज की कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग का वर्णन किया गया।

आज कथास्थल पर रायपुर दक्षिण विधायक एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री महामाया देवी मंदिर पब्लिक ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा आज स्वामी श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी का अभिनंदन कर राधा सर्वेश्वर संस्थान वृंदावन को सनातन धर्म प्रसार एवं गौ संरक्षण हेतु 31,000/- का अंशदान दिया.
राधा सर्वेश्वर संस्थान के मुख्य प्रतिनिधि सुदर्शन शरण महराज जी ने जानकारी दी है की कल 25 नवंबर सोमवार को श्रीमद्भागवत् ज्ञानयज्ञ के अंतिम दिन कथा का समय सुबह नौ से दोपहर एक बजे तक रखा गया है.

आयोजन प्रतिनिधि डा.भावेश शुक्ला “पराशर” ने बताया की कल कथा के पश्चात हवन पूर्णाहूति कर भोग भंडारा का कार्यक्रम भी रखा गया है। इस आयोजन में सुरेश अवस्थी, रमेशचंद्र अग्रवाल, रविशंकर अग्रवाल, अश्वनी बानी का विशेष सहयोग प्राप्त हो रहा है।

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