प्रधानमंत्री ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए न्यायपालिका की प्रशंसा की

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज कहा कि सामाजिक परिवर्तन और व्‍यवस्‍था में बदलाव के लिए कानून का शासन ही आधार है। उन्‍होंने कहा कि कानून सर्वोच्‍च है और न्‍यायपालिका में देशवासियों का अटूट विश्‍वास है। पीएम मोदी उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्‍ट्रीय न्‍यायिक सम्‍मेलन को संबोधित कर रहे थे।अयोध्‍या भूमि विवाद पर उच्‍चतम न्‍यायालय के हाल के फैसले का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि फैसला आने से पहले बातचीत का कई दौर चला, लेकिन लोगों ने उच्‍चतम न्‍यायालय के फैसले को दिल से स्‍वीकार किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ये गर्व की बात है कि भारतीय लोकतंत्र में न्‍यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका तीनों एक दूसरे के काम का सम्‍मान करते हुए संविधान की भावनाओं को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी का जीवन सत्‍य और सेवा के लिए समर्पित था, जो न्‍यायपालिका का आधार माना जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में न्‍याय के त्‍वरित निष्‍पादन के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है और सरकार अदालतों को एंटीग्रेटेड मिशन लगमोड प्रोजेक्‍ट से जोड़ने का प्रयास कर रही है।

पीएम मोदी ने कहा कि सरकार ने लगभग डेढ़ ह‍जार पुराने कानूनों को समाप्‍त करके नये कानून बनाये हैं। उन्‍होंने कहा कि लैंगिक समानता के बगैर कोई भी देश या समाज तरक्‍की नहीं कर सकता।श्री मोदी ने पर्यावरण संबंधी विधिशास्‍त्र को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाये रखा है। उन्‍होंने कहा कि एक समय था जब ऐसा कहा जाता था कि तेजी से विकास और पर्यावरण की सुरक्षा एक साथ नहीं हो सकती, लेकिन भारत ने इस परिप्रेक्ष्‍य को बदल दिया है। देश तेजी से बदल रहा है और इसका वन क्षेत्र भी बढ़ा है।

सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए कानून और न्‍याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि लोकतंत्र में विरोध और लोकप्रियता दोनों का स्‍वागत किया जाना चाहिए, लेकिन लोकप्रियता जब संवैधानिक जनादेश को प्रभावित करती है, तो समस्‍या बन जाती है। उन्‍होंने यह भी कहा कि सरकार चलाने की जिम्‍मेदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों पर छोड देनी चाहिए।
प्रधान न्‍यायाधीश एस.ए. बोबडे ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने एक मजबूत और स्‍वतंत्र न्‍यायपालिका की व्‍यवस्‍था की है। देश संविधान की इस मूल भावना को बरकरार रखने का प्रयास कर रहा है। उन्‍होंने कहा कि भारत में विभिन्‍न संस्‍कृतियों का संगम है। मौलिक अधिकारों का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि इनके साथ कर्तव्‍यों का भी पालन किया जाना जरूरी है।

सम्‍मेलन में उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति एन नागेश्‍वर राव और न्‍यायमूर्ति एन वी रमन्‍ना तथा अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने भी अपने विचार रखे। सम्‍मेलन में विश्‍व भर के कई कानूनविद् हिस्‍सा ले रहे हैं। सम्‍मेलन का विषय है- ”न्‍यायपालिका और बदलता विश्‍व”।