पहले 21अब 19 और आगे 24 दिनो तक बढ़ सकता है लागडाउनजाने कुल 64 दिनों का होगा लागडाउन? क्या है कारण
क्योंकि क्वारंटाइन शब्द लैटिन भाषा के शब्द क्वारेंटेना (Quarantena) से बना है। जिसका मूल अर्थ ‘40 दिन के समय’ से है। इसका मतलब संगरोध या संगरोधन या किनारे पर आने-जाने से रोकना है। ऐसी कोई बीमारी, जिसकी मानव से मानव में स्थानांतरित होने की पुष्टि हो चुकी है और उस दौरान यदि किसी व्यक्ति के संक्रमित होने की आशंका होती है, भले ही उसमें संक्रमण के लक्षण न प्रकट हुए हो तो भी उस व्यक्ति की गतिविधियाँ को एक स्थान विशेष में सीमित कर दिया जाता है।
दरअसल, पुराने समय में जिन जहाज़ों में किसी यात्री के रोगी होने या जहाज़ पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता था, तो उस जहाज़ को बंदरगाह से दूर चालीस दिन ठहरना पड़ता था। प्राचीन काल में विभिन्न समाजों ने संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिये संगरोध का सहारा लिया है, तथा यात्रा व परिवहन पर प्रतिबंध लगाया है। इतना ही नहीं संक्रमित व्यक्तियों के संक्रमण मुक्त होने तक समुद्री संगरोध (Maritime Quarantine) का भी सहारा लिया।
ग्रेट ब्रिटेन में प्लेग को रोकने के प्रयास के रूप में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थीजाने कानून
“वर्ष 1824 में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल (John Marshall) ने अपने एक आदेश में कहा कि किसी संक्रामक रोग के प्रसार की आशंका में राज्य के पास क्वारंटाइन कानून और स्वास्थ्य आपातकाल के दिशा-निर्देशों को लागू करने का पूर्ण अधिकार है” बैक्टीरिया या वायरस संक्रमण के तेजी से हो रहे प्रसार को कम करने के लिये क्वारंटाइन को सबसे प्रभावी और पुराना तंत्र माना जाता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के रखरखाव और बीमारियों के संचरण को नियंत्रित करने के लिये दुनिया के सभी न्यायालयों द्वारा कानूनी रूप से अनुमोदित किया गया है। यह दर्शाता है कि चिकित्सा जगत ने क्वारंटाइन विधी को संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने में एक प्रभावी उपाय के रूप में मान्यता दी है।
वर्ष 1377 में यूरोप महाद्वीप में तेज़ी से फैल रहे प्लेग के प्रसार को रोकने के लिये ग्रेट काउंसिल (Great Council) ने पहली बार मेडिकल आइसोलेशन बिल को पारित किया।
“आइसोलेशन के अंतर्गत 30 दिन की समयावधि को निर्धारित किया गया, जिसे ट्रेंटिनो (Trentino) नाम दिया गया। जब इस समयावधि को बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया तब इसे क्वारंटाइन नाम से जाना जाने लगा।”
क्वारंटाइन व आइसोलेशन में अंतर
सामान्य रूप से आइसोलेशन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हो जाता है। इस प्रक्रिया में संक्रमित व्यक्ति को अन्य गैर संक्रमित लोगों से अलग कर दिया जाता है ताकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में न स्थानांतरित हो पाए। वहीँ क्वारंटाइन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब किसी समूह या समुदाय के संक्रमित होने की आशंका व्यक्त की जाती है।
आइसोलेशन का कार्य स्वास्थ्य उपकरणों से लैस परिसरों यथा: हॉस्पिटल, मेडिकल सेंटर, मेडिकल कॉलेज इत्यादि स्थानों पर ही संभव है। जबकि क्वारंटाइन की प्रक्रिया अस्थाई तौर पर सीमित स्वास्थ्य उपकरणों से लैस स्थानों पर अपनाई जा सकती है। व्यक्ति स्वयं को होम क्वारंटाइन भी कर सकता है अर्थात अपने घर के किसी एक कमरे में ही अपनी गतिविधियों को सीमित कर ले
जहाँ आइसोलेशन का उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति को पूर्णरूप से संक्रमण मुक्त करना है तो वहीँ क्वारंटाइन का उद्देश्य संक्रमण की आशंका वाले समूह या समुदाय की निगरानी करना है। कोरोना वायरस के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आइसोलेशन की कोई निर्धारित समयावधि नहीं है क्योंकि यह व्यक्ति के पूर्णतः संक्रमण मुक्त होने तक कार्य करती है। जबकि क्वारंटाइन की समयावधि 14 दिन निर्धारित की गई है।
*क्वारंटाइन अवधि व मूल अधिकार * वर्ष 1990 में गोवा में कार्यरत वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फेडरेशन के एक कर्मचारी को HIV वायरस के संक्रमण से पीड़ित पाया गया। उसे गोवा पब्लिक हेल्थ (अमेंडमेंट) एक्ट, 1957 द्वारा तत्काल 64 दिनों की क्वारंटाइन अवधि में रखा गया। परंतु उस व्यक्ति द्वारा सरकार के इस कृत्य को अपने मूल अधिकारों के हनन के रूप में देखा गया और मूल अधिकारों की पुनर्बहाली हेतु बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई। वर्ष 1990 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि एकांतवास में किसी व्यक्ति को रखना निश्चित ही उसके मूल अधिकारों का हनन है, परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित है जिसका प्रसार एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में हो सकता है तब ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पब्लिक हेल्थ के विरुद्ध प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जनहित को ध्यान में रखते हुए गोवा सरकार के क्वारंटाइन अवधि के निर्णय को सही पाया गया।
वर्ष 2014 में इबोला नामक संक्रामक बीमारी का इलाज़ करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की एक महिला स्वास्थ्यकर्मी को कुछ दिनों के लिये क्वारंटाइन अवधि में रखने का निर्णय लिया गया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर जनहित व जन स्वास्थ्य को वरीयता दी गई।
भारत में एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 के अनुसार, किसी संक्रामक बीमारी के प्रसार की आशंका में केंद्र व राज्य सरकार को निरोधात्मक उपाय करने की शक्ति प्रदान की गई है।एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897
औपनिवेशिक काल में महामारियों की रोकथाम के लिये एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 बनाया गया था। जो स्वाइन फ्लू, डेंगू, हैज़ा और प्लेग जैसी बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिये देशभर में नियमित रूप से लागू किया जाता है। यह अधिनियम विशेष प्रावधान करता है जो बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने और रोकथाम के उपायों को लागू करने के लिये आवश्यक हैं।
प्रावधान
अधिनियम की धारा-3 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा-188 के अनुसार, किसी भी विनियमन या आदेश की अवज्ञा करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। अधिनियम की धारा-4 के अनुसार, अधिनियम का कार्यान्वयन कराने वाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
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