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तेलंगाना का रामप्पा मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में हुआ शामिल

तेलंगाना का रामप्पा मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में हुआ शामिल

दिल्ली-भारत को एक और ऐतिहासिक उपलब्धि मिली है तेलंगाना राज्य के मुलुगु जिले के पालमपेट में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर जिसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है इसको यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया है। यह निर्णय आज यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 44वें सत्र में लिया गया। रामप्पा मंदिर, 13 वीं शताब्दी के अनुपम स्थापत्य कला का प्रतीक है जिसका नाम इसके वास्तुकार, रामप्पा के नाम पर रखा गया था। इस मंदिर को सरकार द्वारा वर्ष 2019 के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में एकमात्र नामांकन के लिए प्रस्तावित किया गया था।

यूनेस्को ने आज एक ट्वीट में इस बात की घोषणा की यूनेस्को द्वारा रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किए जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने लोगों से इस राजसी मंदिर परिसर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का साक्षात अनुभव प्राप्त करने का भी आग्रह किया। सभी को बधाई, खासकर तेलंगाना के लोगों को।

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तेलंगाना का रामप्पा मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में हुआ शामिल

केन्द्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) मंत्री जी. किशन रेड्डी ने अपने ट्वीट में लिखाहै कि मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि @UNESCO ने पालमपेट, वारंगल, तेलंगाना में स्थित रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया है। संपूर्ण राष्ट्र की ओर से, विशेष रूप से तेलंगाना के लोगों की ओर से, मैं प्रधानमंत्री @narendramodi के प्रति उनके मार्गदर्शन और समर्थन के लिए आभार व्यक्त करता हूं।

रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर की जानकारी

रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने कराया था। यहां के स्थापित देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। 40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

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काकतीयों के मंदिर परिसरों की विशिष्ट शैली, तकनीक और सजावट काकतीय मूर्तिकला के प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं। रामप्पा मंदिर इसकी अभिव्यक्ति है और बार-बार काकतीयों की रचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत करती है।

मंदिर छह फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों,

स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है,

जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है।

समयानुरूप विशिष्ट मूर्तिकला व सजावट और काकतीय

साम्राज्य का एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है।

मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों की विशिष्ट शैली,

जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है, दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के

प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है।

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