महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए- नारी का सम्मान,छुट्टी का दिन,नारी दिवस सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
नारी का सम्मान-रीमा ने चाय और नाश्ते में गरम पोहे बनाये थे।खाना बनाने वाली आँटी आयी तो उसका स्वागत मुस्कुरा कर किया।गरम गरम और चाय आँटी को दिया तो वे आशीष देती रही। रीमा ने कहा,आँटी आज महिला दिवस है,आप जानती है,आज हम नारियों का सम्मान किया जाता है। चाय का घूँट लेकर आँटी ने कहा,हम गरीबों का क्या सम्मान।यह सब तो आप जैसी पढ़ी लिखी महिलाओं के लिये है। रीमा ने समझाया,ऐसा नहीं है।नारी का सम्मान हर समय होना चाहिये।यह बात हम नारीयों को ही समझनी होगी।
आज सब काम आप और मैं साथ करेंगे। बढिया भोजन कर माँजी के साथ आँटी को खाना खिलाया तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। भोजन के बार साडी का उपहार और मिठाई का पैकेट दिया और पांव पड़ी। आँटी ना ना करती रही। रीमा ने कहा,आँटी शाम को आपकी छुट्टी।आज आराम करना।माँ जी के खिचड़ी बना लूँगी।आज ये मुझे और अवि को बाहर ले जा रहे है।कहते कहते वह शरमा गयी। आँटी जाते-जाते ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया।
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छुट्टी का दिन
हमेंशा की तरह आज भी रीमा की आँखे जल्दी खुल गयी।घड़ी में देखा चार बज गये थे।उसने बिस्तर छोड़ दिया।
हालांकि आज छुट्टी थी।परंतु कामकाजी महिलाओं के लिये छुट्टी का दिन व्यस्त और चुनौती भरा होता है।सप्ताह के सारे पेन्ड़िग काम मुँह उठाये होते है।उन्हें सिलसिलेवार निपटाना जरूरी होता है।तभी अगला सप्ताह सुकूं से बीतता है।
उसने झाडू उठायी।सबसे पहले सारी छत,सीढियां झाडी।फिर गमलों पर काम किया। काफी समय निकल गया।तब वह नित्य कर्म से निवृत्त हो पूजा पाठ और अन्य सब। सब एक एक कर उठेंगे।दूध,चाय और नाश्ते की अलग फरमाइश।
भोजन बनाने वाली आँटी के आने से पहले वह चाय नाश्ता बना लेती है।फिर आती है,झाडू कटका वाली लड़की।आधे से ज्यादा काम तो रीमा निपटा चुकी होती है। पतिदेव उठेंगे तो सब अस्त व्यस्त हो उठेगा।कहेंगे,तुम करती ही क्या हो..सब काम करने के लिये तो सर्वेंट तय है।
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आज पूरे घर की सफाई,और सप्ताह भर के कपडों को लेकर मशीन चलानी है।अधूरे में पूरा आज वाशिंग मशीन दिक्कत दे रही है,दो पंखे नहीं चल रहा।बाथरुम का पानी लिक हो रहा है।सबसे कठिन गैस का पाइप लिकेज हो रहा है। सबको फोन लगााकर समय लिया है।पतिदेव का या किसी अन्य का कोई योगदान नहीं।सब रीमा करेगी..उसकी यह ड्यूटी है।
अवि उठने वाला था।सारे दुःख भूल कर वह अवि की बगल में लेट गयी।बच्चे ने उसे अपने से लिपटा लिया। वह सोच रही थी,कितनी कमजोर हो गयी है,कल राज भी कह रहा था।एक कार्यक्रम में उसे देखा था।वह बिना तैयार हुए चली गयी थी।स्वयं का ख्याल रखने का उसे समय ही नहीं है।और कोई उसकी परवाह करे ,यह उम्मीद भी नहीं।
परंतु फिर भी पूरे उत्साह से वह जी रही है।घर हो या कालेज।समाज हो या साहित्य।वह अपनी भूमिका पूर्ण निष्ठा से निष्ठा से निभाती है। यह सोचकर वह हँसते हुए उठ गयी।दो तीन कविताओं के भाव उठ रहे थे।तुरंत लिख कर सबसे पहले राज को पोस्ट करेगी। छुट्टी का दिन कतरा कतरा बीत रहा था और रीमा इस इंद्रधनुषी रंगो में भीगती हुयी जी रही थी।
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नारी दिवस
स्थानीय समिति द्बारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान समारोह रखा गया था। विशिष्ट अतिथि में रीमा को भी आमंत्रित किया गया था।सभी का आख्यान हो चुका था।अंतिम बारी रीमा की थी। समय काफी हो गया था।लोग जाने की जल्दी में थे।जैसे ही रीमा ने माईक थामा।भवन में पीन डा्प साइलेंट छा गया।सभी ध्यान से सुनने लगे।
लगभग सभी ने नारी विमर्श, नारी के दर्द की बात की थी। रीमा ने कहा,मुझे गर्व है कि मैं नारी हूं।हम नारी है हमें नारी ही रहने दिजिये।हमें पुरुष से बराबरी नहीं करनी।उनकी अपनी भूमिका है। धरती और नारी में एक समानता है,दोनों की कोख होती है। उससे वह नवसृजन करती है।
साथ ही गद्य के साथ तीन पद्य भी कहे,जो सारगर्भित थे।तालियाँ बजती रही।रीमा ,चुपके से राज की तरफ देख रही थी।राज की आँखों में गर्व था,एक सम्मान था। रीमा में एक काबिलियत थी कि जब वह मंच पर आती,कोई सँकोच न रहता। साक्षात माँ सरस्वती उसके भीतर विराजमान रहती।
कार्यक्रम के बाद समिति के सचिव ने कहा,इतना अच्छा कहती है,हमें पता ही न था। विवेक बोले आपने इतनी सुंदर कविता और गद्य कहा है,इसका तो एक पूरा आख्यान अलग से हो सकता है। चंद्र कांता जी ने कहा,रीमा तुम हर बार कुछ अलग कर जाती है। इस कार्यक्रम के बाद रीमा का उत्साह बढ़ा।अब वह हर तरह के साहित्यिक कार्यक्रम में शिरकत लेना चाह रही है।राज हमेंशा उसे प्रोत्साहित करते है।
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