महासमुंद। रूखमणी माता लक्ष्मी की अवतार है और भगवान श्री कृष्ण नारायण जी के। लक्ष्मी सदैव नारायण की होती हैं परंतु आज के परिवेश में सभी लक्ष्मी को अपना बनाना चाहते हैं। मा लक्ष्मी जब अकेले आती है तो उल्लू में बैठ कर आती हैं और उल्लू बनाकर चली जाती हैं पर जब मां लक्ष्मी भगवान नारायण जी के साथ आती हैं तब उनका वाहन गरुड़ होते हैं जिनके पंखों से वेद वेदांत के मंत्र प्रवाहित होते रहते हैं। इसलिए मां लक्ष्मी को सदैव नारायण जी के साथ पूजना चाहिए उससे घर में सुख-शांति समृद्धि वैभव की प्राप्त होती है।
महाराज डॉक्टर यशवंत शर्मा ने भागवत महापुराण में उपस्थित श्रोताओं को कथा के पांचवे दिन कंस वध, कृष्ण और रूखमणी विवाह की कथा का रसपान कराया। उन्होंने कहा कि भगवान ने वेद विहित विवाह करके समाज को एवं मानव जीवो को गृहस्थ रूपी गाड़ी को धर्म के पद पर बढ़ाने का एवं धर्म का पालन करते हुए अपने मोक्ष के साधन को और आत्मबोध को जागृत करने का मार्ग प्रशस्त किया। भगवान श्री कृष्ण गृहस्थ जीवन अनुकरणीय रहा है।
माता लक्ष्मी को सदैव नारायण के साथ पूजना चाहिए :- यशवंत शर्मा
आज के परिवेश में विवाह होते ही लोग अलग परिवार में रहना चाहते हैं। ऐसे लोग अपने माता-पिता के त्याग तपस्या को भूल कर कृतघ्न बन जाते है। पर इसके विपरीत भगवान ने अपने माता-पिता को कंश के कारावास से मुक्ति दिलाई और कंश का वध कर उनका भी उद्धार कर धर्म की स्थापना की। माता-पिता की सेवा और एक अच्छे राजा व एक अच्छे शासक के रूप में प्रजापालन कर पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण तीनों से भगवान ऋण से मुक्त होकर हमे बताया। भगवान ने बताया कि हमे तीनो ऋण का पालन कैसे करना चाहिए और तीनो ऋण से अऋणी कैसे हो सकते हैं।
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