महासमुंद। छग के हसदेव जंगल व ओड़िशा की गंदमार्दन पर्वत को भाजपा सरकार से खतरा है । सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिए हैं कि वे आरक्षित वन भूमि के व्यक्ति विशेष या संस्थानों को किए गए आबंटन की जाँच करेगी जो वनों के हित में या जंगल से जुड़ा ना हो। उक्त बाते पूर्व संसदीय सचिव विनोद सेवनलाल चंद्राकर ने जारी विज्ञप्ति मे कहा है ।
हसदेव जंगल को मध्य भारत के फेफड़े के रूप में वर्णित
श्री चंद्राकर ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का छत्तीसगढ़ सरकार पालन करती है तो हसदेव जंगल की कटाई में तत्काल रोक लगना चाहिए। क्योंकि, हसदेव जंगल को मध्य भारत के फेफड़े के रूप में वर्णित किया जाता है। हसदेव की कटाई का भयंकर परिणाम हम वर्तमान में देख रहे हैं। बेतहाशा गर्मी व तापमान में अनियंत्रित रूप से वृद्धि होना हसदेव जंगल देवभूमि की कटाई का परिणाम है।
श्री चंद्राकर ने कहा कि भाजपा ने जहां-जहां सरकारें बनाई वहां के प्राकृतिक तथा ऐतिहासिक स्थलों को नष्ट करने की योजना पहले से बना रखी है। ओड़िशा में भी भाजपा की सरकार आते ही गंदमार्दन पर्वत के आसपास सैकड़ों एकड़ जमीनों को अदानी कंपनी के हवाले किया गया है।
गंदमार्दन पर्वत प्राकृतिक औषधियों से आच्छादित
गंदमार्दन पर्वत प्राकृतिक औषधियों से आच्छादित है। यह पर्वत पाैराणिक मान्यताओं पर रामायण काल से जुड़ी है। ओड़िशा सहित छत्तीसगढ़ के लोगों की आस्था भी गंदमार्दन पर्व से जुड़ी है। बाक्साइट उत्खनन के लिए गंदमार्दन का अस्तित्व को समाप्त करने केंद्र सरकार व ओड़िशा की भाजपा सरकार ने मिलकर लाखों लोगों की आस्था को ठेंस पहुंचाई है।
श्री चंद्राकर ने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन काल में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों की देवभूमि हसदेव जंगल की पेड़ों की कटाई पर पूर्णत: रोक विधान सभा में प्रस्ताव पारित कर लगाया था। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार के दबाव में आकर छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने हसदेव जंगल की कटाई तथा कोयला उत्खनन करने काम अदानी कंपनी को दे दिया है।
2 माह पूर्व हसदेव क्षेत्र के परसा कोयला खदान में पेड़ों की कटाई का विरोध करने वाले आदिवासियों पर पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया। जिसमें आदिवासी नेता और हसदेव बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ता रामलाल करियाम समेत कई आदिवासी गंभीर रूप से घायल हो गये थे। आदिवासियों की परंपरा, सभ्यता तथा उनके आस्था से जुड़ी हसदेव वन भूमि की कटाई आदिवासियों के विरोध के बाद भी निर्बाध रूप से जारी है।
कोयला खनन के लिए 2.73 लाख से अधिक पेड़ों को काटने की योजना है। पहले ही 94,460 पेड़ काट दिए गए हैं। यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है। हसदेव की कटाई से वन्य जीवों को संकट, हाथी-मानव द्वंद्व तथा आदिवासियों की जंगल पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। हसदेव जंगल के आसपास के सैकड़ों आदिवासी परिवारों के समक्ष जीविकोपार्जन का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
हमसे जुड़े :-
watsApp https:FLvSyB0oXmBFwtfzuJl5gU
Facebook https:dailynewsservices/