महासमुन्द-क्लब पारा में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के अंतिम दिवस आचार्य मोनू महाराज ने परीक्षित मोक्ष के प्रसंग में कहा कि जो भगवान् के चरणों में हारना जानता है उसे ही जीत मिलती है, समाज में किसी को कोई नहीं सुधार सकता और ऐसा करने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए बल्कि स्वयं को बदलना व सुधरना चाहिए, स्वयं सुधरने से दुनिया खुद सुधर जायेगी। कर्म को भगवान की सेवा बनाना ही मुक्ति है, मोह मानव जीवन का विनाश करता है इसलिए जो मोह को त्यागकर किसी भी परिस्थिति में मुस्कुराना सीख लेता है उ से ही जीवन में विजय मिलती है।
वर्तमान समाज में दिखावा ज्यादा है गरीब व्यक्ति महंगे आभूषण धारण करता है तो लोग विश्वास नहीं करते लेकिन अमीर आदमी के साधारण पहनावे को भी कीमती मान लिया जाता है। सुदामा प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्य ने बताया कि जब भगवान कृष्ण की एक हजार आठ रानियाँ सुदामा के पैर छूकर प्रणाम करना चाहती थी तो उनकी दुर्बलता को देखकर श्रीकृष्ण ने रानियों से कहा कि यह कार्य मन से संपन्न करो क्योंकि जीवन एक माला की तरह है जिसमें मन धागा व फूल शरीर की तरह है फूल एक समय पर मुरझा जाते हैं लेकिन धागा नहीं इसलिए मन से प्रणाम व भक्ति ही सदैव उचित होता है।
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भगवान कृष्ण विग्रह की कथा प्रसंग में बताया गया कि धरती ही आधार है और सबको धरती में समाहित होना पड़ता है मनुष्य के मन में संसार के प्रति नैराश्य तथा भगवान् के प्रति आशावादी विचार हमेशा होना चाहिए। श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ के विश्राम चरण में श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी वर्षा कर शोभायात्रा निकाली गई।
सुधा होरीलाल शर्मा द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में लोगों की अपार भीड़ रही इस दौरान श्रद्धालुओं ने कोरोना महामारी से विश्व की रक्षा हेतु पार्थिव शिवलिंग निर्माण कर उसका विधि-विधान से अभिषेक किया आचार्य मोनू महाराज ने बताया कि जिस मिट्टी से शिवलिंग निर्माण किया जाता है उसका प्रत्येक रज अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्रदान करता है तथा इसका अभिषेक विश्व कल्याण सहित सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करता है।
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