Baloudabajar :- जिला अस्पताल मे स्थापित डायलिसिस मशीन गरीब मरीजों के लिए वरदान बना है जिले के अलावा अन्य जिलों से मरीज पहुँचकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे है । अब तक 17 मरीज लाभांवित हुए है,9 एक्टिव मरीजों का नियमित डायलिसिस किया जा रहा है। डीएमएफ से 2 मशीन एवं राज्य शासन से 2 मशीन लगाए गए है ।
मशीन की लागत लगभग 40 लाख
कलेक्टर रजत बंसल के निर्देश पर जिला चिकित्सालय में डायलिसिस मशीनों ने काम करना शुरू कर दिया है। जिले के दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से मरीजों का डायलिसिस के लिए यहां आना होता है ऐसे में उन्हें इसका पूरा लाभ मिल रहा है। इस संबंध में जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एम पी महिस्वर ने बताया कि अस्पताल में इस समय डायलिसिस हेतु चार मशीनें लगाई गई हैं जिनकी लागत लगभग 40 लाख है।
मरीजों के लिए निशुल्क
अस्पताल में डायलिसिस पूरी तरह से निशुल्क उपलब्ध है। जिला चिकित्सालय में लगी हुई मशीनों द्वारा लगभग 4 घंटे में डायलिसिस पूरी होती है। स्थिति के अनुसार मरीज को माह में आठ से बारह बार तक डायलिसिस करवाना पड़ सकता है। अभी पूरी प्रकिया ट्रॉयल रन के हिसाब से करवाई जा रही है। वर्तमान में डायलिसिस यूनिट में नौ एक्टिव पंजीकृत मरीज हैं जो नियमित रूप से डायलिसिस करवाने आते हैं इसमें से दो मरीज हेपेटाइटिस सी के हैं। उक्त चार मशीनों में एक मशीन हेपेटाइटिस सी के मरीजों के लिए कार्य कर रही है।
इन्हे मिला लाभ
नजदीकी जिले सारंगढ़-बिलाईगढ़ के ग्राम ठाकुरदिया निवासी मोहन लाल की 53 वर्षीय पत्नी को डायलिसिस की आवश्यकता होती है। पूर्व में वह निजी अस्पताल में अपना उपचार करवा रहे थे जहां पंद्रह सौ से दो हज़ार की राशि खर्च होने की बात निजी अस्पताल ने बताई बाद में मोहनलाल को जिला चिकित्सालय के डायलिसिस यूनिट के संबंध में जानकारी मिली तो वह अपनी पत्नी को लेकर जिला अस्पताल आने लगे है।
इसी प्रकार बलौदाबाजार शहर के संतोष ठाकुर की पत्नी सविता ठाकुर जो कि अपना डायलिसिस करवा रही हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल में यह सुविधा पूरी तरह से निःशुल्क है तथा अब हमें डायलिसिस के लिए दूर शहरों में नहीं जाना पड़ता जिसके कारण हमें हर प्रकार से सहूलियत होती है।आने-जाने का खर्च तो बचता ही है साथ में बीमारी की स्थिति में सफर के थकान से भी बचाव होता है।
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार अवस्थी ने बताया कि डायलिसिस गुर्दे अथवा किडनी की बीमारी से ग्रसित मरीज के लिए वह विधि है जिसमें जब गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं या फिर उनकी क्षमता कम हो जाती है तब कृत्रिम तरीके से शरीर के अपशिष्ट पदार्थों को इस विधि के माध्यम से शरीर से बाहर निकाला जाता है । यह तब तक करना पड़ता है जब तक व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाता या फिर नई किडनी प्रत्यारोपित नहीं की जाती।यदि अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर ना निकाला जाए तो शरीर में विष फैल सकता है तथा व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
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