महासमुंद। कलेक्टर के फर्जी हस्ताक्षर कर आदिवासियों के जमीन को खरीद-फरोख्त मामले मेंं विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद पुन: आदिवासियों के नाम पर उक्त जमीनों को हस्तांतरित करने के आदेश को लगभग 13 वर्ष बीतने के बाद भी आदेश का पालन नहीं होने के पर पूर्व संसदीय सचिव विनोद सेवन लाल चंद्राकर ने प्रमुख सचिव छ.ग. शासन को पत्र प्रेषित कर उचित कार्रवाई की मांग की है।
छ.ग. शासन को प्रेषित पत्र
पूर्व संसदीय सचिव ने प्रमुख सचिव छ.ग. शासन को प्रेषित पत्र में बताया है कि जिला महासमुन्द अंतर्गत भू-राजस्व संहिता की धारा 165 (6) एवं 165 (7) के तहत कलेक्टर महासमुन्द के फर्जी हस्ताक्षर से अनुमति प्राप्त कर आदिवासी / काबिजकास्त जमीनों का क्रय-विक्रय किया गया है। शिकायत पश्चात छत्तीसगढ़ शासन राजस्व विभाग के आदेशानुसार जांच की गई। जिसमें 108 प्रकरण कलेक्टर के फर्जी हस्ताक्षर से अनुमति आदेश होना पाये जाने के बाद, इसमें वैधानिक कार्यवाही की गई।
108 प्रकरणों से भिन्न 23 प्रकरण जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा छिपाया गया था, शिकायतकर्ताओं द्वारा पुनः 23 प्रकरण मय दस्तावेज के सक्षम अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। कोई कार्रवाई नहीं होने पर स्मरण पत्र भी कलेक्टर महासमुन्द को दिये गये एवं विधानसभा प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण के माध्यम से शासन को अवगत कराया गया। तत्पश्चात अनुविभागीय अधिकारी राजस्व महासमुंद / पिथौरा द्वारा कार्रवाई आदेश आदिवासी भू-स्वामी के हक में दर्ज करने पारित किया गया।
आदेश का पालन नहीं
पूर्व संसदीय सचिव चंद्राकर ने कहा कि आज आदेश पारित हुये लगभग 12-13 वर्ष हो गये हैं। लेकिन उक्त आदेश का पालन नहीं किया गया है। आज भी फर्जी आदेश से विक्रयशुदा भूमि क्रय करने वाले व्यक्ति के नाम पर ही भू-रिकाडों में दर्ज है। उक्त जमीनों को आदिवासियों के नाम पर दर्ज नहीं किया गया है। जिससे भू-राजस्व संहिता की धारा 170 (ख) के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन परिलक्षित हो रहा है।
पूर्व संसदीय सचिव ने कहा कि भू-राजस्व संहिता की धारा 165 (6) एवं 165 (7) के तहत फर्जी आदेश बनाने एवं इस कृत्य में संलग्न व्यक्ति के विरूध्द अपराधिक प्रकरण भी दर्ज नहीं कराया गया। कार्रवाई के लिए छग विधानसभा में ध्यानाकर्षण के माध्यम से शासन के ध्यान में लाया गया। जिला प्रशासन द्वारा विधानसभा में भी गलत जानकारी दी गई, कि इस मामले में अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया है।
जिला प्रशासन पर संदेह
जबकि, कलेक्टर महासमुन्द के उस समय के कार्यरत रीडर स्व. भावगत रात्रे एवं उनके परिवार के विरूध्द इस प्रकरण से भिन्न अन्य प्रकृति के प्रकार के अपराध पर अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था, जो कि इस प्रकरण से भिन्न है। इस तरह छत्तीसगढ़ विधान सभा में भी अधिकारियों द्वारा गलत जानकारी देकर गुमराह किया गया। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व महासमुन्द / पिथौरा द्वारा पारित आदेशों का पालन अभी तक न किया जाना जिला प्रशासन पर संदेह प्रदर्शित करता है।
उन्होंने कहा कि भू-राजस्व संहिता की धारा 170 (ख) के तहत दिये गये आदेशों का पालन करते हुये आदिवासियों के नाम से भू-राजस्व रिकार्ड दुरूस्त किया जाना एवं ऐसे कूटरचित आदेशों को बनाने वालों के विरूध्द जनहित में अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाना आवश्यक है, ताकि, छग के आदिवासियों के हक व अधिकारों से कुठाराघात करने वाले भू-माफियाओं पर सख्त कार्रवाई के माध्यम से एक सबक मिल सके। अत: इस मामले में शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है। जिससे जमीन के असली मालिक आदिवासियों को उनका अधिकार मिल सके।
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