महासमुंद। स्थानीय दादा बाड़ा में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ कथा का बखान करते हुए व्यास पीठ से पंडित हिमांशु कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि भागवत मोक्ष की ओर ले जाने की विद्या है। भागवत कथा श्रवण करने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
कथा सामने से सुनी जाती है
जब भगवान शंकर ने माता पार्वती को भगवान की कथा सुनाई तो वह सो गई और कथा का श्रवण शकू पक्षी ने किया। कथा पूर्ण होने पर भगवान शंकर ने जयकारा लगाया तो माता की नीद खुली तो वह पूछने लगी कि आगे क्या हुआ। भगवान शंकर समझ गए कथा के बीच में पार्वती जी सो गई तो उन्होंने अपने योगबल से जान लिया कि शकू पक्षी ने कथा श्रवण किया है। इससे वे क्रोधित हो गए और मारने दौड़े, माता पार्वती ने रोका तो प्रभु बोले इस पक्षी ने शास्त्र के विरूद्ध कथा सुनी है। कथा सामने से सुनी जाती है। किंतु यह पक्षी पीछे बैठकर सुनने का दोष किया है।
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व्यास पीठ से हिमांशु कृष्ण भारद्वाज आज भागवत पुराण धरती पर कैसे आया? इस कथा का वर्णन कर रहे थे। मुख्य जजमान परीक्षित के रूप में नपाध्यक्ष प्रकाश चंद्राकर, ललिता चंद्राकर के साथ चंद्राकर समाज की ओर से सह जजमान के रूप में दाऊलाल चंद्राकर , कौशल्या चंद्राकर, बंग समाज की ओर से अजय विश्वास, पूर्वी विश्वास शामिल हुए। कथा श्रवण करने रायपुर से धर्म जागरण सह अखिल भारतीय प्रमुख राजेन्द्र, नंदन जैन तथा समाज सेवी दीनानाथ खुंटे पहुंचे थे।
कठिनाइयो को समझे भगवान का प्रसाद
हिमांशु कृष्ण भारद्वाज ने कथा पंडाल में उपस्थित धर्मप्रेमी जनता से कहा कि जीवन में कठिनाईयों का सामना हो तो उसे भगवान का प्रसाद मानकर धारण करना चाहिए। सुख और दुख कर्मो का फल है जो समयानुसार ही सब को प्राप्त होता है। एक प्रसंग के माध्यम से उन्होंने बताया कि घास और बांस के बीजों का आकार एक जैसा है दोनों को ही हवा-पानी, धूप एक बराबर दिया गया। किंतु घास तीव्र गति से बढ़ता गया, दूसरी ओर बांस के बीज में पौधे पांचवे वर्ष आया और वह छ: माह के भीतर ही पूर्ण आकार ले लिया।
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जीवन और मृत्यु तुम्हारे हाथ नहीं
कहने का आशय यह है कि जो प्राप्त करना है वह समय के अनुसार ही मिलेगा। व्यक्ति की इच्छा से कुछ नहीं होता, कुछ लोग दुखी होने पर आत्महत्या की सोचते हैं लेकिन एक बात अच्छे से समझ लो जीवन और मृत्यु तुम्हारे हाथ नहीं है। ब्रम्हा ने नारद मुनि को आज्ञा दी कि वे भगवान की कथा का प्रचार-प्रसार करे। इस पर नारद मुनि भगवान शंकर के पास गए उस समय भोलेनाथ ध्यान मगन थे, तो माता पार्वती जी के समक्ष पहुंचकर कहने लगे कि भगवान शंकर ने आप से कई बातें छुपाई है। उन्होंने एक नही अनेक विवाह किए है, फिर क्या था माता जी क्रोधित हो गए और प्रभु के ध्यान से उठने का इंजतार करते हुए कोप भवन में चली गई।
जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का उपाय
जब शंकर जी ध्यान से जागे तो वे नाराजगी का कारण समझ गए और बताए कि इस जन्म से पहले तुमने अनेक जन्म लिया है। और तुम्ही से ही पूर्व जन्मों में विवाह किया हूं, तब माता पार्वती ने जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का उपाय पूछते हुए भागवत कथा श्रवण की इच्छा जाहिर की। इस पर माता पार्वती को भागवत कथा सुनाई। लेकिन नींद आ जाने के कारण पार्वती जी तो सो गई और कथा का श्रवण शुकदेव महाराज ने किया।
जब भगवान शंकर ने क्रोधित होकर सुक पक्षी को मारने दौड़ा तो वे उड़ते-उड़ते बद्रिका आश्रम के पास भगवान व्यास मुनि की धर्मपत्नी के मुख् के माध्यम से गर्भ में चले गए। बारह वर्षो बाद जब भगवान ने कहा कि तुम गर्भ से बाहर निकलो संसार की माया तुझ पर नही पड़ेगी तो वे बाहर आ गए और भगवान की कथा का जन-जन तक प्रचार करने लगे। कथा श्रवण करने काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे है। दूसरे दिन ही आयोजकों को कथा स्थल पर बने डोम को खोलकर बढ़ाना पड़ा।
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