महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए अधूरापन, बँटवारा, तलाश जारी है,अजनबी, तलाश जारी है, तेरे मेरे सपने सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
अधूरापन- साढ़े तीन बजे से उठ गयी थी।छत,आँगन घर सब साफ कर ली।पौधों की देख भाल की।अब स्नान,ध्यान फिर पूजा।सबके लिये नाश्ता।आठ बजे काम करते हुए वे अपने मित्र राज से बात कर रही थी कि रूद आ गया,मम्मी भूख लगी है”। उसने कहा,-“हाथ मुँह धो लो ।बेटा गरमागरम चिला और चटनी बनायी है।’
राज से विदा माँगी।और अपने ख्यालों में खो गयी।रूद्र, उसका सबकुछ।उसे देखते ही वह सारे दुःखदर्द भूल जाती है।रूद्र उसके जीवन का एक ऐसा उपहार हे,जिसने उसके खालीपन को भर दिया था। उसे याद आया विवाह के बाद वे पति के साथ ज्यादा रह न पायी।दोनों की सर्विस अलग जगह रहि.हाँ मां जी सदा साथ रहे।
परंतु उसके जीवन में एक अधूरापन छाया था।जिसे वह भरना चाहती थी।उसे पुरानी स्मृति से याद हो आया कि इस बार दिपावली की छुट्टी पर पतिदेव घर आये थे।तब उसने पहली बार पति से कुछ माँगा था।पतिदेव असमंजस मूड में थे।दोनों अलग है तो वे ड़र रहे थे कि ऐसे में बच्चा प्लान करना ठीक रहेगा।तब उसने पति के गले से। लगकर वादा किया था कि मैं सब कर लूंगी।और फिर रूद्र आ गया था।मानो उसके जीवन में खुशहाली ही खुशहाली आ गयी।
-“मम्मी भूख लगी है,कहाँ खो गयी।” “हाँ।हाँ ,बेटा बस हो गया।वह बड़े ममत्व से रूद को चीला बना कर खिलाने लगी।
बँटवारा
दोनों भाईयों के बीच बँटवारा होना था।मतभेद और मनभेद दोनों काफी बढ़ गये थे।हालांकि दोनों की पत्नियाँ अलग होना नहीं चाह रही थी।दोनों के एक एक संतान थी और माँ साथ थी।
माँ ने बहुत कोशिश की सुलह की।पर, संभव न हो पाया। चल अचल सँपति बराबर बराबर बाँट दी गयी।अब माँ की बात आयी कि वह किसके साथ रहेगी। शहर में रह रही शादीशुदा बेटी चाहती थी माँ उसके साथ रहे,पर,पुराने सँस्कारों से घिरी माँ को यह मंजूर न था।
अँत में वे रो पडी,-“तुम लोगों के पिता के चले जाने के बाद कितनी कठिनाई से दोनों को पाला,पढ़ाया लिखाया।पर,एकता का पाठ न पढ़ा सकी।”अपने आँसू पोंछ कर बोली,-“ठीक है।तुम लोग रहो ,अपने ढ़ंग से।मैं तुममें से किसी के पास नहीं रहूँगा।अलग कमरा लेकर रहूँगी।तुम लोगों के पिता की पेंशन ही काफी है,मेरे लिये।जिसको मिलना होगा,आ जाना। “सब चुप सिर झुकाए खड़े थे।
अजनबी
बच्चों को विदा कर वे हाथ हिलाते हुए टे्न को जाते हुए चुपचाप देख रहे थे।एक सप्ताह साथ रहने के बाद बड़ा बेटा परिवार सहित अपने कार्य स्थल पर चला गया था।मन जाने कैसा हो रहा था। तभी प्लेटफार्म पर बने बैंच पर एक सज्जन को देखा वे दुःखी लग रहे थे।साथ में एक प्यारी बच्ची थी।
आजकल जो हादसे हो रहे है,उस कारण अजनबियों से बात करने में ड़र रहता है।परंतु वे अपनी आदतानुसार पास गये और पूछा।पता चला उनका सामान और पर्स गुम हो गये थे।उन्हें ओरिसा जाना था।गाडी बदलनी थी।टिकीट पर्स में रह गयी। वे केन्टीन से दो काफी,पानी की बोतल और बिस्किट ले आये।
जब सब सामान्य हुआ तो उन्होंने अजनबी को घर चलने का आग्रह किया।वे मना करते रहे। उन्होंने बच्ची का वास्ता दिया।घर पहुंचे पत्नीजी ने उनका ह्रदय से स्वागत।स्नान आदि के बाद कपड़ो आदि की व्यवस्था कर दी।साथ ही शाम की टै्न से उनके जाने की व्यवस्था कर दी।उन्हें आराम करने को कहा।अजनबी जो अजनबी न रहे थे।संकोच कर रहे थे।परंतु दोनों पति पत्नि और छोटे बच्चे का स्नेह देखकर अभिभूत हो गया।वे अब घर के सदस्य हो गये।भविष्य में एक नये संबंध का जन्म होता दिख रहा था। चाय पीते हुए वे अपने होकर अपनों के बीच घुल मिल गये।
तलाश जारी है
एक डेढ बरस पहले राज के जीवन में सूना पन था।सब कुछ बिखरा बिखरा सा।हताशा,मायूसी से धिरा रहता। उसे तलाश थी एक ऐसे साथी की जो उसके जीवन में आये पतझड़ को वसंत रूत में बदल ले। हर समय मन कहता,तलाश जारी है…। तभी एकाएक कोई अपना उसके जीवन में आया,और जीने की दिशा ही बदल गयी। वह सकारात्मक सोचने लगा।हँसने लगा।खुशियाँ जीवन में लौट आयी। उसकी तलाश पूरी हो गयी।
तेरे मेरे सपने
दोनों अलग अलग जगहों से थे।रोजी रोटी के लिये नगर में आकर बसे।किसी अजनबी मोड़ पर मुलाकात हुयी।दोनों अपने-अपने सपने लिये आये थे।मन मिल गया। रोज शाम को कभी बाग में तो कभी मंदिर में मिलते।साथ एक एक कप चाय पीते।दिन भर की अपनी कारगुजारी बाँटते।सपनों की चर्चा करते।
दोनों के सपने काफी मिलते जुलते थे।सहज,साँस्करिक सपने।परंतु एक रोज उन्हें लगा कि सपने साकार होना संभव नहीं।दोनों देर शाम तक बैठे।नदी का शांत किनारा था।फिर एक दूसरे के गले लग कर खूब रोये। अँत में अपने अपने सपनों को नदी में विसर्जित किये।अब वे अपनी राह चल दिये,वास्तविकता के कठोर धरातल से सामना करने।
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