केन्द्र ने राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में टिड्डियों के प्रकोप रोकने के लिए अभियान शुरू किया है.पश्चिम और उत्तर-पश्चिम भारत के बडे़ हिस्से में टिड्डियों के प्रकोप के बीच कृषि और किसान कल्याण विभाग ने राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में टिड्डी रोकथाम अभियान तेज़ कर दिया है.
कल राजस्थान के बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर और मध्य प्रदेश के सतना, ग्वालियर, सीधी, राजगढ़, बैतूल, देवास और अगर मालवा जिलों में टिड्डियों के झुंड सक्रिय दिखे.प्रभावित राज्यों में जिला प्रशासन और कृषि निगरानी इकाइयों ने दो सौ क्षेत्रीय टिड्डी निरोधक कार्यालय खोले हैं.इन कार्यालयों में तालमेल के साथ सर्वेक्षण और नियंत्रण अभियान भी चलाया जा रहा है.
टिड्डी दल के प्रकोप की रोकथाम के लिए किसानों को मार्गदर्शन व् जानकारी
ये टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम 6 से 8 बजे के आस-पास पहुँचकर जमीन पर बैठ जाते हैं.टिड्डी दल शाम के समय समूह में पेड़ों, झाड़ियों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं और वही पर रात गुजारते हैं तथा रात भर फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं और फिर सुबह 8 -9 बजे के करीब उड़ान भरते हैं। अंडा देने की अवधि में इनका दल एक स्थान पर 3 से 4 दिन तक रुक जाता है.
प्रारंभिक उपाय
1. टिड्डी दल का समूह जब भी आकाश में दिखाई पड़े तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत अपने खेत के आस-पास मौजूद घास – फूस का उपयोग करके धुआं करना चाहिए अथवा आग जलाना चाहिए जिससे टिड्डी दल आपके खेत में ना बैठकर आगे निकल जाएगा.
2. टिड्डी दल दिखाई देते ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आवाज कर उनकों अपने खेत पर बैठने न दें.अपने खेतों मे पटाखे फोड़कर,थाली बजाकर, ढोल- नगाड़े बजाकर आवाज करें, टैक्टर के साइलेसंर को निकाल कर भी तेज ध्वनि कर सकते हैं.कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर के टिड्डी को तथा उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है. इनको उस क्षेत्र से हटाने या भगाने के लिए ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से सुबह का समय उपयुक्त होता है.
प्रकाश प्रपंच लगाकर एकत्रित करके नष्ट कर सकते हैं.क्योंकि एक डरपोक स्वभाव का कीट होता है अतः तेज आवाज से डरकर आपके फसल व पेड़ पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा.आपके क्षेत्र में टिड्डी दल दिखाई देता है तो उपरोक्त उपाय को अपनाते हुए तत्काल अपने क्षेत्र के कृषि विभाग के अधिकारियों व प्राविधिक सहायकों /सलाहकारों अथवा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.
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