महासमुन्द: फ्लोरोसिस की बीमारी कई कारणों से हो सकती है जैसे दूषित भोजन या औद्योगिक उत्सर्जन या फिर किसी अन्य माध्यम से शरीर में फ्लोराइड की ग्राह्यता। लेकिन पूरी दुनिया में फ्लोरोसिस पेय जल से जुड़ी एक प्रमुख व्याधि मानी जाती है क्योंकि यह सबसे आम और गम्भीर माना जाता है। महासमुंद जिले भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में समस्या को गंभीरता से लेते हुए जिले में लगातार निरीक्षण और परीक्षण किया जा रहा है।
इस संबंध में चिकित्सक डॉ संजय दवे ने बताया कि ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टैंडर्ड और इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार जल में फ्लोराइड की अधिकतम स्वीकार्य मात्रा 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर या 1.0 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक मात्रा होने पर उस जल को ग्रहण करने वाले पर फ्लोरोसिस होने का जोखिम मँडराता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। जिसके तहत विभागीय अमला जमीनी स्तर पर भ्रमण कर डोर-टू-डोर दस्तक दे रहा है। जिले के करीब 57 गांवों से पेय जल के लगभग 558 सैंपल लिए जा चुके हैं। जल्द ही इनकी जांच कर व्यवस्थागत उपाए किए जाएंगे।
गैर संक्रमणीय रोग फ्लोरोसिस के बारे में बताते हुए जिला कार्यक्रम प्रबंधक संदीप ताम्रकार ने कहा कि समस्या से निपटने के लिए जहां एक ओर सरकार शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयासरत है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन सैंपलिंग के साथ-साथ इस ओर लोगों में जागरूकता लाने में भी जुटा हुआ है। इसके लिए प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ आरके परदल के निर्देशानुसार डॉ दवे का दल समुदाय और स्कूली बच्चों में फ्लोरोसिस की निगरानी, प्रशिक्षण और जनशक्ति सहायता के रूप में क्षमता निर्माण करने के साथ-साथ पानी और पेशाब में फ्लोराइड की मात्रा के स्तर की निरंतर जांच-पड़ताल कर रहा है।
ऑयन मीटर सहित प्रयोगशाला सहायता और उपकरण के रूप में सुविधाएं भी प्रदाय की जाती हैं। जिससे उपचारी शल्य-चिकित्सा और पुनर्वास उपलब्ध कराकर फ्लोरोसिस के मामलों का प्रबंधन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि फ्लोरोसिस के कारण पिछले कई वर्षों से स्थानीय लोगों में बड़ी संख्या में दंत विकारों सहित कुछ अन्य बीमारियाँ होने की भी संभावना है।
फ्लोरोसिस, एक जन स्वास्थ्य समस्या है। जो लंबे समय तक पेयजल, खाद्य उत्पादों, औद्योगिक प्रदूषकों के माध्यम से फ्लोराइड के अत्यधिक सेवन से होती है। दंत फ्लोरोसिस, स्केलेटल फ्लोरोसिस और नॉन-स्केलेटल फ्लोरोसिस जैसे विकार इसके कारण होते हैं। जिससे दांतों के चॉक के समान सफेद होना या उनमें पीले, भूरे या काले धब्बे पड़ने के अलावा ऊपरी परत पर धारियां बन जाती हैं। हड्डियों सहित गर्दन, रीढ, कंधे, कूल्हे और घुटनों के जोड़ों को भी यह प्रभावित कर यह विकलांगता का कारण भी बन सकता है। इसके लिए नागरिकों को फ्लोराइड के लक्षण दिखते ही चिकित्सक से संपर्क कर इलाज कराना चाहिए।