महासमुंद- धान के समर्थन मूल्य में सिर्फ 53 रु की बढ़ोत्तरी,लोकसभा चुनावों में किये गये किसानों की आय दुगुनी करने का वादा भाजपा कब निभायेगा.पिछले साल ही केन्द्र सरकार के कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने धान का लागत मूल्य प्रति कि्ंवटल 1484 रू. तय किया था, जिसमें बीज, खाद, मजदूरी सहित सभी कृषि आदानो की लागत को जोड़ा है। भाजपा बार-बार स्वामिनाथन कमेटी के सिफारिशों को लागू करने की बात करती है लेकिन इसे लागू करने का साहस भाजपा की केन्द्र सरकार में है ही नहीं।
पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष आलोक चन्द्राकर द्वारा जारी बयान में कहा है कि किसान समर्थक कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने छत्तीसगढ़ में जरूर यह कर दिखाया है। मोदी सरकार ने धान के लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत अधिक दाम देने का वादा क्यों नहीं निभाया? अगर भाजपा वाकई में किसान हितेषी होती तो 2014 के लोकसभा चुनाव में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का वादा निभाती।
किसानों को धान के लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत अधिक दाम देने का वादा नहीं निभाने का कारण मोदी सरकार और भाजपा किसानों को, प्रदेश और देश की जनता को बतायें? मांग है कि किसानों को उनकी फसल की लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत लाभ देने का साहस दिखाएं जैसा कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार भूपेश बघेल की सरकार कर रही है।
धान का 300 रू. बोनस 5 साल देने का संकल्प तक तो जिस भाजपा ने नहीं निभाया, उस भाजपा से किसानों के भले की उम्मीद कभी नहीं की जा सकती है। झूठ की बुनियाद पर व ‘लागत+50 प्रतिशत’ मुनाफा की जुमलावाणी कर मोदी जी ने 2019 में देश के अन्नदाता किसान का फिर से समर्थन तो हासिल कर लिया, पर पिछले 5 सालों से फसलों पर ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की के वादे कभी खरे नहीं उतरे। मोदी सरकार ने एक बार फिर किसानों को ‘राजनैतिक लॉलीपॉप’ दिखाकर 2019 के लोकसभा चुनावों में नए जुमले गढे और फिर से सफलता प्राप्त करने के बाद किसानों को फिर से ठगना आरंभ कर दिया है।
सच तो यह है कि ‘मोदीकाल’ में किसान ‘काल का ग्रास’ बनने को मजबूर हो गया है। न समर्थन मूल्य मिला, न मेहनत की कीमत। न कर्ज से मुक्ति मिली, न किसान के अथक परिश्रम का सम्मान। न खाद, कीटनाशक दवाई, बिजली, डीज़ल की कीमतें कम हुईं और न ही हुआ किसान को फसल के सही बाजार भावों का इंतजाम।
अन्नदाता किसान का पेट केवल ‘जुमलों’ और ‘कोरे झूठ’ से भर सकता।
पूर्व जिलाध्यक्ष ने आगे कहा कि मोदी सरकार ने जानबूझकर ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ की चालू साल 2018-19 की सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया। आज मोदी मंत्रीमंडल ने खरीफ फसलों के मूल्यों की घोषणा कृषि मूल्य आयोग द्वारा पिछले साल, यानि 2018-19 के लागत मूल्य आंकलन को भी ध्यान में रखकर नहीं की है, कृषि मूल्य आयोग के मौज़ूदा साल यानि 2019-20 के लागत मूल्य आंकलन के आधार पर तो किसान के साथ धोखाधड़ी की ही है।
भाजपा की सरकारों ने धान का समर्थन मूल्य 11 वर्षो में कुल 460 रू. की वृद्धि की है, जो कि स्पष्ट रूप से भाजपा के किसान विरोधी धान विरोधी रवैये को उजागर करती है। जबकि कांग्रेस ने 10 वर्षो में 890 रू. की वृद्धि की है। यूपीए 1 में धान का समर्थन मूल्य 5 वर्षों में 2004 से 2009 तक 450 रूपयें बढ़ाया गया। (550 रू. प्रति कि्ंवटल से 900 रू. प्रति कि्ंवटल) और यूपीए 2 में 2009 से 2014 तक 5 वर्षों में धान का समर्थन मूल्य 440 रूपयें बढ़ाया गया।
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