उच्चतम न्यायालय ने संसद से सदस्यों को अयोग्य ठहराने के लोकसभा और विधानसभा अध्यक्षों के अधिकारों की समीक्षा करने को कहा है। शीर्ष न्यायालय ने कल ऐतिहासिक व्यवस्था देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि संसद को फिर से सोचना होगा कि क्या किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर फैसले का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष को अर्द्धन्यायिक प्राधिकारी के रूप में दिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि सदन का अध्यक्ष प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी पार्टी विशेष से जुड़ा होता है। न्यायालय ने कहा कि किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष की बजाए संसदीय ट्रिब्यूनल को देने के लिए संविधान संशोधन पर संसद को गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
न्यायालय का कहना था कि इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायधीश या किसी उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायधीश कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि संसद किसी और वैकल्पिक प्रणाली पर भी विचार कर सकती है जिसमें निष्पक्ष और तेज गति से फैसले सुनिश्चित किए जा सकें। न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सदन के अध्यक्षों की भूमिका और सदस्यों की अयोग्यता के मामलों में फैसलों पर देरी की चर्चा की। न्यायालय ने मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और राज्य के वन मंत्री श्याम कुमार को अयोग्य घोषित करने की कांग्रेस नेता की याचिका पर चार हफ्ते के भीतर निर्णय दें।
न्यायालय ने कहा कि यदि चार सप्ताह के भीतर निर्णय नहीं लिया जाता तो किसी भी पक्ष को राहत या निर्देश लेने के लिए अदालत में जाने की स्वतंत्रता होगी। न्यायालय कांग्रेस नेता केशम मेघचन्द्र सिंह द्वारा मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था।
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— DNS (@DNS11502659) January 22, 2020
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